आम्र मंजरी झूमती ,मादक महके बाग
-हर्षित कोयल कूकती,बौराया सा काग ।
बाबा देवर बन गए, फागुन में वो बात
ललचाये हर बाल मन,रंगों की बारात ।
नई कोपलें भर रहीं,जीवन में मकरंद
लहक रही मद कामनी,उर में भर आनंद ।
लाल टिकुलिया चाँद सी,कजरारे से नैन
बतियाने पनघट लगे ,फागुन गाती रैन ॥
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
वैसे तो मेरी टिप्पणी दिख नहीं रही, आदरणीया कल्पनाजी, किन्तु, आपकी स्वीकृति हमें भी सचेत और आश्वस्त रखती है. यों, मेरे कहे का हेतु पूर्ण हो गया है.
सादर
आ० maharshi tripathi जी आभार /सादर
आ० khursheed khairadi जी आभार /सादर
आ० मिथिलेश वामनकर जी आभार /सादर
आ० Hari Prakash Dubey जी आभार
आ० जितेंद्र भाई जी आभार /सादर
आ० सौरभ जी आप ने सही कहा टिकुलिया गलती से गलत लिख गया है सही कर देती हूँ आभार /सादर
आ० सौरभ जी ,आप ने सही कहा लिखने में गलती हुई है आप का बहुत आभार /सादर
फाल्गुन माह पर बहुत सुंदर दोहावली प्रस्तुति, आदरणीया कल्पना दीदी. हार्दिक बधाई आपको
आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेई जी ,सुन्दर दोहावली,
लाल टिकुलीया चाँद सी,कजरारे से नैन
बतियाने पनघट लगे ,फागुन गाती रैन ॥ ..वाह , हार्दिक बधाई आपको ! सादर
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