For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- आया था जो भी ज़ेहन में काग़ज़ पे लिख दिया ( बराए इस्लाह )

तरतीब से सजे दर-ओ- दीवार घर नहीं
सुख दुख में जब कि साथ तेरे हमसफ़र नहीं

ऐसा नहीं कि राहे सफ़र में शजर नहीं
आसान फिर भी जिन्दगी की रहगुज़र नहीं

उपदेश दूसरों को सभी लोग दे रहे
खुद उन पे जो अमल करे ऐसा बशर नहीं

रिश्तों की भीड़ में कहीं गुम हो गये सभी
अब रौनकें वो पहले सी, चौपाल पर नहीं

जीवन की भागदौड़, चकाचौंध में बशर
खोया है इस कदर उसे खुद की खबर नहीं

गुटका शराब पीते हैं अब सब के सामने
आया अजीब दौर है बच्चों को ड़र नहीं

जन्नत की हर खुशी पे तेरे दिल का राज हो...??
शुक्र-ए-खुदा मना कि जो तू दरबदर नहीं

साहिल पे बैठ कर जो फ़क़त ख़्वाब देखते
किस्मत में उनकी एक भी लालो गुहर नहीं

छूटे जनम मरण का ये बन्धन, मिले खुदा
दरवेश की दुआ में वो अब तक असर नहीं

आया था जो भी ज़ेहन में काग़ज़ पे लिख दिया
शेर-ओ-सुख़न तो कहने का मुझ में हुनर नहीं

-- दिनेश कुमार २२/०२/२०१५

( मौलिक व अप्रकाशित )

अरकान -- २२१-२१२१-१२२१-२१२

Views: 587

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pari M Shlok on February 24, 2015 at 11:40am
गुटका शराब पीते हैं अब सब के सामने
आया अजीब दौर है बच्चों को ड़र नहीं

रिश्तों की भीड़ में कहीं गुम हो गये सभी
अब रौनकें वो पहले सी, चौपाल पर नहीं
लाजवाब ग़ज़ल ...............................!!
Comment by दिनेश कुमार on February 24, 2015 at 6:57am
मिथिलेश भाई जी, मुझे जमीन पर ही रहने दो.. इतनी वाह वाह दिमाग में चढ़ सकती है। हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया भाई। अब शायद एक महीने का अवकाश लेना पड़ेगा मुझे, सभी टोकने लगे हैं। अप्रैल में पुनः कोशिश करूँगा। रचनाएँ तो पढ़ता रहूँगा। स्नेह बनाए रखिएगा।
Comment by दिनेश कुमार on February 24, 2015 at 6:43am
शुक्रिया आदरणीय भाई Hari Prakash Dubey जी। हौसला अफजाई के लिए आभार
Comment by दिनेश कुमार on February 24, 2015 at 6:41am
हौसला अफजाई का शुक्रिया आदरणीय गिरिराज सर जी। आभार। अरकान लिख दिए हैं सर जी।
Comment by दिनेश कुमार on February 24, 2015 at 6:39am
शुक्रिया आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव। आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 24, 2015 at 12:31am

वाह...वाह...वाह...वाह...वाह...वाह... क्या खूब ग़ज़ल कही है दिनेश भाई जी  . एक एक अशआर कमाल है .... बहुत ही उम्दा और बेहतरीन ग़ज़ल ... दिल से दाद कुबूल फरमाए. आदरणीय समर कबीर जी के सुझाव से मिसरे में गज़ब का निखार आया है. आपकी श्रेष्ट ग़ज़लों में से एक....ग़ज़ल की बहुत बहुत बधाई  

Comment by दिनेश कुमार on February 24, 2015 at 12:07am
सर्वप्रथम नतमस्तक आदरणीय समर कबीर सर जी। आप ने ग़ज़ल पढ़ी, सराहा, मैं धन्य हुआ। आप का सुझाव अति उत्तम है आदरणीय। वैसे मैंने मिले ही लिखा था। आशीर्वाद बनाए रखिएगा सर जी।
Comment by Samar kabeer on February 24, 2015 at 12:00am
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,इन्तिहाई ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं,यह मिसरा शायद टाईपिंग की ग़लती का शिकार हो गया है :-

"छूटे जनम मरण का ये बन्धन, मिले खुदा"

इसमें "मिले" की जगह "मिरे" होगा शायद ?
Comment by Hari Prakash Dubey on February 23, 2015 at 11:50pm

आदरणीय दिनेश भाई, सुन्दर रचना 

रिश्तों की भीड़ में कहीं गुम हो गये सभी
अब रौनकें वो पहले सी, चौपाल पर नहीं....हार्दिक बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2015 at 3:12pm

आया था जो भी ज़ेहन में काग़ज़ पे लिख दिया
शेर-ओ-सुख़न तो कहने का मुझ में हुनर नहीं  ------ बहुत सुन्दर !! हार्दिक बधाइयाँ , आदरणीय दिनेश भाई ! बहर नहीं जान पाया , लिख दें तो गज़ल समझने में आसानी होगी , और बाक़ियों को भी ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अजय भाईजी  सभी पंक्तियों में योग की महिमा है और योग को जीवन शैली बनाने की प्रेरणा…"
15 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रानुरूप अच्छे छंदों का सृजन हुआ है आदरणीय अखिलेश जी।         …"
20 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"अच्छे छंद हुए हैं आदरणीया प्रतिभा पांडे जी। चित्र को अच्छे से परिभाषित किया है आपने।    …"
29 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी  चित्र के अनुरूप और शिल्प बद्ध है आपकी प्रस्तुति, हार्दिक बधाई स्वीकार…"
31 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी,  आपकी तीनों छंद रचनाएँ प्रदत्त चित्र को, इसके भाव को शाब्दिक कर रही…"
38 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"रचना प्रयास को अपना अमूल्य समय देकर सराहने और उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ…"
58 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद +++++++++ सारे चैनल देखिए, पढ़िए सब अखबार्। योग शक्ति को मानता, अब सारा संसार॥ अब सारा…"
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"कुण्डलिया छंद  _____ कहता है यह प्यार से,बात पते की चित्र।  सेहत की कुंजी मिले, बने…"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय, 'नूर साहब, ग़ज़ल लेखन पर आपके सिद्धहस्त होने से मैंने कब इन्कार किया। परम्परागत ग़ज़ल…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अजय अजेय जी,  आपकी छंद-रचनाएँ शिल्पबद्ध और विधान सम्मत हुई हैं.  सर्वोपरि, आपके…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"योग ****    छोटी छोटी बच्चियाँ, हैं भविष्य की आस  शिक्षा लेतीं आधुनिक, करतीं…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service