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उद्घाटन : लघुकथा (हरि प्रकाश दुबे)

“मंत्री जी, शानदार पुल बनकर तैयार है, आपके नाम की शिला भी रखवा दी है, बस जल्दी से उद्घाटन कर दीजिये !”

 “अरे यार देख रहे हो कितना व्यस्त चल रहा हूँ आजकल, लेन-देन तो हो गया है न, फिर तुम्हे उद्घाटन की इतनी चिंता क्यों है ?”

“साहब, चिंता उद्घाटन की नहीं है, बारिश की है !” 

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”     

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 23, 2015 at 10:13am

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण सर , सादर अभिवादन! उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका  आभार ! सादर 

Comment by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 9:48am

आदरणीय हरिप्रकाश सर ,"लेन-देन तो हो गया है न " करार व्यंग्य है ,सत्ताधीशों को केवल लेन -देन की चिंता है |दलालों को केवल उद्घाटन से मतलब है |जनता को केवल पिसना है |बहुत अच्छी रचना हुई  है |सादर अभिनन्दन| 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on February 22, 2015 at 9:16pm

वाह! चिंता उद्घाटन की नहीं, बारिश की है!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 22, 2015 at 3:31pm

वाह वा .. वाह वा .. सही बात !
दिल से बधाई स्वीकारें आदरणीय ..
सादर

Comment by savitamishra on February 21, 2015 at 11:46pm

बहुत बढ़िया व्यंग

Comment by विनय कुमार on February 21, 2015 at 5:25pm

बढ़िया व्यंग है , बधाई ..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 21, 2015 at 10:45am

वाह! आदरणीय हरिप्रकाश जी।  बहुत सटीक व्यंग दिया है आपने. हार्दिक बधाई

Comment by Hari Prakash Dubey on February 20, 2015 at 10:00pm

 आदरणीय महर्षि  त्रिपाठी जी आपकी उत्साहवर्धक  टिप्पणी के लिए हृदय से धन्यवाद ,आभार।

Comment by Hari Prakash Dubey on February 20, 2015 at 9:57pm

आदरणीया वंदना जी, रचना पर आपकी उपस्थिति  और आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on February 20, 2015 at 9:56pm

धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , कथा की सराहना करने के लिए आपका ह्रदय तल से आभार 

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