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दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया 

पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया 

प्यार मुहब्बत , भाईचारे  ,मानवता की

नहीं समझती बातें सीधी सादी ,दुनिया

दिन सी उजली रातें भी हो  जाये यारों

अँधियारे में रहे भला क्यूं आधी दुनिया

घर से ऑफिस ऑफिस से घर  फिर कुछ ग़ज़लें  

सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया 

नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें 

कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया 

शहरों में है झूठे दर्पण दरके रिश्ते 

गाँवों में है झील सरीखी सच्ची दुनिया 

धर्म दीन की गाँठें बाँधी सरल दिलों में 

अपने जाले में आखिर ख़ुद उलझी दुनिया 

मैंने सच्ची कुछ बातें फिर दुहराई तो 

मुझको कहती है दीवाना पगली दुनिया 

जाने कब 'खुरशीद' निखारोगे तुम आकर 

देहातों की घोर अँधेरी काली दुनिया 

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Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 10:40am

आदरणीय विजयशंकर सर ,हार्दिक आभार |सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 27, 2015 at 10:27am
दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया
पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया
वाह क्या बात है,
टी वी , नेट ने घर ला दी है सारी दुनिया
बीच में उनके खो गयी है अपनी दुनिया
बहुत खूब.
बहुत बहुत बधाई आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, सादर ।
Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 9:26am

आदरणीय गिरिराज सर , आ. राहुल साहब ग़ज़ल पर प्यार बरसाने के लिए हृदय तल से आभारी हूं |

नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें 

कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया 

राहुल भाई यहाँ उसकी ,बच्चों के लिए नहीं अपितु सहधर्मिणी (जीवनसंगिनी ) के लिए आया है ,जिसकी दुनिया बहुत छोटी हैं लेकिन उसका ह्रदय विशालतम है ,मेरा सविनय अनुरोध है पुनः शेर को गुनगुनाने की कृपा करें |सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2015 at 10:33pm

शहरों में है झूठे दर्पण दरके रिश्ते 

गाँवों में है झील सरीखी सच्ची दुनिया

धर्म दीन की गाँठें बाँधी सरल दिलों में 

अपने जाले में आखिर ख़ुद उलझी दुनिया

जाने कब 'खुरशीद' निखारोगे तुम आकर      ---

देहातों की घोर अँधेरी काली दुनिया

बहुत खूब अश आर हुये हैं आदरणीय खुर्शीद भाई , लाजवाब गज़ल के लिये बधाइयाँ

स्वीकार करें ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 1:06pm
घर से ऑफिस ऑफिस से घर फिर कुछ ग़ज़लें
सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया
नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें
कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया
शहरों में है झूठे दर्पण दरके रिश्ते
गाँवों में है झील सरीखी सच्ची दुनिया
धर्म दीन की गाँठें बाँधी सरल दिलों में
अपने जाले में आखिर ख़ुद उलझी दुनिया

एक एक शे'र दिल को छू गया आदरणीय!
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 1:03pm
आदरणीय लाजवाब गजल वाह वाह!

नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें
कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया
आदरणीय यहाँ बच्चे के साथ उसकी दुनिया की जगह शायद उनकी दुनिया लिखना ठीक हो! सन्रम!
Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:41am

आदरणीय मिथिलेश जी , गुमनाम सर ,ग़ज़ल पर प्यार बरसाने का आभार |आपका यही प्यार मेरे अशहार को माँजता है ,सँवारता है |सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:40am

आदरणीय हरिप्रकाश सर , आ. सोमेश भाई , आदरणीय श्याम नारायण जी , तहेदिल से आप सभी का शुक्रगुज़ार हूं |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर आभार |

Comment by Shyam Narain Verma on January 15, 2015 at 9:57am

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 10:21pm

दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया 

पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया .............. बेहतरीन मतला 

घर से ऑफिस ऑफिस से घर  फिर कुछ ग़ज़लें  

सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया ...... क्या अशआर हुआ है लगा जैसे मैं कहना चाह रहा था लफ्ज़ आपने दे दिए.

नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें 

कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया ..... बेहतरीन ... उस छोटी सी मासूम दुनिया के साथ का पूरा अवसर ही नहीं मिलता ... हाय रे ये भाग दौड़ का जीवन ...

शहरों में है झूठे दर्पण दरके रिश्ते 

गाँवों में है झील सरीखी सच्ची दुनिया ......... उम्दा अशआर 

धर्म दीन की गाँठें बाँधी सरल दिलों में 

अपने जाले में आखिर ख़ुद उलझी दुनिया .... क्या खूब कहा है आपने ... बिलकुल सच्ची बात ... अब झेलो वाले हालात 

जाने कब 'खुरशीद' निखारोगे तुम आकर 

देहातों की घोर अँधेरी काली दुनिया .......... मक्ता भी कमाल हुआ है.

आदरणीय खुर्शीद सर आप बस कमाल कर रहे है ... लग रहा है खजाने के द्वार खोल दिए है ...एक से एक कीमती रत्न बाहर आ रहे है. आपकी गज़लें पढ़कर बस झूम जाता हूँ .. हमेशा शब्द कम पडने लगते है .... बस इस ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं .... 

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