For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"आत्मायें बिक चुकीं हैं"

आत्मायें,

बिक चुकीं हैं,

बेचीं जा रहीं हैं,

कुछ असहाय,बिचारीं हैं,

कुछ म्रत्प्रायः,

कुछ मर चुकी हैं !

शरीर,

उन मृत आत्माओं का,

बोझ ढोए जा रहें हैं !

शब्द,

खो चुके अपना अर्थ,

उन अर्थहीन शब्दों से,

अच्छे दिनों के नारे लगा रहें हैं !

पैर,

चलना नहीं चाहते,

उन अनिच्छुक पैरों को ,

अच्छे दिनों की आस में,

कंटक पथों पर जबरन चला रहें हैं !

ईश्वर,

रंगमंच पर विद्यमान है,

नाटक वही है,

दृश्य पर दृश्य,

बदलते जा रहें हैं !

लोग,

घायल दिलों से,

सवाल कर रहें हैं,

अच्छे दिन कब आ रहें हैं ?

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

Views: 782

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 14, 2015 at 8:49pm

कब आएंगे अच्छे दिन? इन्तजार रोज नए सपने और इन सपनों के जाल में उलझते जा रहे हम सभी ... राजनीति है बुरी. पर बिना इसके न चलती धरा, आखिर कहाँ है उसकी धुरी .एक ईमानदार व्यक्ति, लड़ रहा, खा रहा थपेड़े, दिन रात!

Comment by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 8:25pm

आपका बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश जी ! आपके हर शब्द से मुझे उत्साह मिलता है ,सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 7:59pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु  सादर धन्यवाद ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 14, 2015 at 12:38pm

आ. हरि प्रकाश भाई , वाह ! क्या बात कही है ,

ईश्वर,

रंगमंच पर विद्यमान है,

नाटक वही है,

दृश्य पर दृश्य,

बदलते जा रहें हैं !

लोग,

घायल दिलों से,

सवाल कर रहें हैं,

अच्छे दिन कब आ रहें हैं   -  बहुत खूब ! बधाई स्वीकार करें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2015 at 11:50am

नाटक वही है,

दृश्य पर दृश्य,

बदलते जा रहें हैं !

लोग,

घायल दिलों से,

सवाल कर रहें हैं,

अच्छे दिन कब आ रहें हैं ?------------------------ sundar bhav  !

 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:49am

इस अच्छी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई ... आ० भाई हरी प्रकाश जी , सादर l

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 14, 2015 at 11:33am
सुन्दर , बधाई , आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2015 at 10:55am

बहुत मार्मिक ...अच्छी रचना है बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 10:49am
बेहतरीन कविता। अच्छे दिनों की आस पर सही चोट करती और वास्तविकता को उजागर करती कविता। आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
6 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
7 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
7 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
7 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, अभिवादन एवं हार्दिक धन्यवाद।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई दयाराम जी, हार्दिक धन्यवाद।"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service