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ग़ज़ल : वक़्त भी लाचार है.

** ग़ज़ल : वक़्त भी लाचार है.

2122,2122,212

आदमी क्या वक़्त भी लाचार है.

हर फ़रिश्ता लग रहा बेजार है.

आज फिर विस्फोट से कांपा शहर.

भूख पर बारूद का अधिकार है.

क्यों हुआ मजबूर फटने के लिए.

लानतें उस जन्म को धिक्कार है.

औरतों की आबरू खतरे पड़ी,

मारता मासूम को मक्कार है.

कर रहे हैं क़त्ल जिसके नाम पर,

क्या यही अल्लाह को स्वीकार है.

कौम में पैदा हुआ शैतान जो,

बन मसीहा आ गया गद्दार है.

नेकियाँ हर धर्म के उपदेश में,

बदनुमा किस धर्म में किरदार है.

पाक दामन साफ़ हो अपना जिगर,

छूत रोगी घर घुसे बेकार है.
**हरिवल्लभ शर्मा.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 10:07pm

आदरणीय "बागी" जी ग़ज़ल पर आपका अमूल्य अभिमत मिला,.

आज फिर विस्फोट से कांपा शहर.

भूख पर बारूद का अधिकार है...."भूख पर"...बारूद के अधिकार.. से तात्पर्य था ...जो बारूद बाँध कर आ रहे हैं..चन्द रुपयों की लालच में ये कार्य करने को मजबूर हैं..उनकी जान के बदले उनके परिजन को पैसे भेज दिए जाते हैं...पेट भरने के लिए निकले लोग ही इसके शिकार होते हैं..विस्फोट में खाने कमाने निकले लोग ही अक्सर मरते हैं..दूसरा शेर वास्तव में स्वतंत्र पढने में वह बात नहीं कह पा रहा ..उसके लिए प्रयास करता हूँ ..सादर...

Comment by somesh kumar on January 10, 2015 at 9:57pm

समसामयिक स्थितियों पर सुंदर गज़ल ,निश्नदेह तीसरा शे'र कुछ अर्थ-नहीं दे रहा और दुसरे में हर जगह से अर्थ में व्यापकता मिलती है ,बाकी आप के सुंदर प्रयास पर बधाई |

Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 9:50pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपका प्रोत्साहन निरंतर उपलब्धि है..हार्दिक आभार.सादर.

Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 9:49pm

आदरणीय gumnaam pithoragarhi जी ग़ज़ल पर आपका स्नेह मिला हार्दिक आभार ..सादर.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 10, 2015 at 9:48pm

आज फिर विस्फोट से कांपा शहर.

भूख पर बारूद का अधिकार है.............भूख पर ? बात कुछ बन नहीं रही, 

अगर ऐसे कहें ....हर जगह बारूद का अधिकार है.

क्यों हुआ मजबूर फटने के लिए.

लानतें उस जन्म को धिक्कार है........आदरणीय एक शेर खुद में पूर्ण होना चाहिए, यदि कोई केवल इस शेर को पढ़े तो कोई अर्थ नहीं निकाल पायेगा, यह शेर भर्ती का लगा मुझे.

बाकी सभी अशआर एक से बढ़कर एक, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई कुबूल करें आदरणीय हरिबल्लभ शर्मा जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2015 at 9:33pm
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।
Comment by gumnaam pithoragarhi on January 10, 2015 at 9:32pm
कर रहे हैं क़त्ल जिसके नाम पर,

क्या यही अल्लाह को स्वीकार है.

वाह बहुत खूब
Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 9:23pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपका अनुमोदन मिला,स्नेहिल हौसला अफजाई हेतु हार्दिक आभार..सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 10, 2015 at 8:44pm

आदरणीय हरि भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , सभी शे अर प्रभावित करते हैं , आपको दिली बधाई ।

Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 7:54pm

आदरणीय Hari Praksh Dubey जी आपने ग़ज़ल पर हौसला अफजाई की दिली शुक्रिया ..सादर 

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