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युग्मों का गुलदस्ता …

युग्मों का गुलदस्ता …


एक  पाँव  पे  छाँव  है  तो  एक  पाँव  पे   धूप
वर्तमान  में  बदल  गया  है  हर रिश्ते का रूप


अब  मानव  के  रक्त  का  लाल  नहीं   है   रंग
मौत  को  सांसें  मिल  गयी  जीवन हारा  जंग


निश्छल प्रेम अभिव्यक्ति के बिखर गए हैं पुष्प
अब  गुलों  के  गुलशन  से  मौसम  भी  हैं रुष्ट


तिमिर  संग  प्रकाश  का  अब  हो गया  है मेल
शाश्वत  प्रेम अब बन गया है शह मात का खेल


नयन  तटों  पर  अश्रु  संग  काजल  करे पुकार
पिया  मिलन  को  धधक  रहे  अधरों पे  अंगार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on January 10, 2015 at 1:01pm

आदरणीय    gumnaam pithoragarhi   जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 10, 2015 at 1:01pm

आदरणीय   Dr Ashutosh Mishra  जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 10, 2015 at 1:00pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव   जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। सर मैंने ये युग्म दोहे की विधा में नहीं लिखे अन्यथा मैं इसे युग्म न कहकर दोहे ही कहता।  ये स्वतंत्र विचारों के  स्वतंत्र युग्म हैं बस विचार आते गए और लिखता गया। दोहे लिखता तो उसकी नयमावली की परिधि में ही लिखता।  आपके विचारों का हार्दिक आभार सर जी।  

Comment by Sushil Sarna on January 10, 2015 at 12:56pm

आदरणीय   Shyam Narain Verma   जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by ajay sharma on January 9, 2015 at 10:42pm

तम के   संग  प्रकाश  का   अभी हुआ  है मेल 
प्रेम शाश्वत  बन गया   शह-ओ- मात का खेल............"shah-au-maat"  ke esthan par 

prem shashvat ban gaya , har jeet ka khel.............zyada better lagta hai ...geyta bhi aa jayegi ...........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 9, 2015 at 9:36pm

आदरणीय सरना जी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 9, 2015 at 6:38pm

वाह बहुत सुन्दर, प्रस्तुति के लिए बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 9, 2015 at 4:58pm

आदरणीय सरना जी ..सुंदर भावों को समाहित किये इन समस्त दोहों के लिए तहे दिल बधाई .सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 9, 2015 at 3:59pm

 आ  0 सरना जी

अच्छे भावों से भरी इस दोहावली में शिल्पगत कुछ सुधार अपेक्षित है -

एक  पाँव  पे  छाँव  है       एक  पाँव  पे   धूप 
बदल  गया  है आजकल    हर रिश्ते का रूप   


अब  मानव  के  रक्त  का  लाल  नहीं   है   रंग
सांस मौत  को  मिल  गयी     जीवन हारा  जंग


निश्छल हर  अभिव्यक्ति से    जग होता है तुष्ट  
अब गुलशन से गुलो से       मौसम  भी  हैं रुष्ट


तम के   संग  प्रकाश  का   अभी हुआ  है मेल 
प्रेम शाश्वत  बन गया   शह-ओ- मात का खेल


नयनन  तट  पर  अश्रु  संग  काजल  करे पुकार
पिया  मिलन  को  धधकते   अधरों पर  अंगार

Comment by Shyam Narain Verma on January 9, 2015 at 1:19pm
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर

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