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मरुस्थलीय मृगतृष्णा

मरुस्थलीय मृगतृष्णा

*****************

तुम कहती हो

प्रतिभाशाली बनो

पर मैं असक्त

प्रतिभाओं का बोझ

उठा नहीं सकता

मरुस्थलीय मृगतृष्णा के

पीछे भाग नहीं सकता

जिस शून्यता की अवस्था में

जी रहा हूँ , क्या उसमे

तुमको पा नहीं सकता ?

मुझ शुन्य को अब

तुम्हारा ही सहारा है

तुमसे जुड़कर ही मेरा

कोई आधार बनेगा

यह गतिहीन जीवन

कुछ आगे बढेगा

मेरे हृदय के पवित्र भावों को

गुणों-अवगुणों से मत तौलो

मेरे समर्पण को स्वीकार करो

अगर हो सके तो मुझे प्यार करो !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

 

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on January 6, 2015 at 5:25pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ,आपकी उत्त्साह वर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक अभिनन्दन है , सादर !  

Comment by कंवर करतार on January 6, 2015 at 1:57pm

'मुझ शुन्य को अब

तुम्हारा ही सहारा है

तुमसे जुड़कर ही मेरा

कोई आधार बनेगा

यह गतिहीन जीवन

कुछ आगे बढेगा'

दुबे भाई ,टंकन में कुछ गलतियाँ प्रायःसब से ही रह जाती हैं उसकी कोई बात नहीं ,बस्तुतः भाव आत्मिक समर्पण को बेताब हैं,सुंदर  कोटिशः बधाईI  

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 11:17am

पर मैं असक्त

प्रतिभाओं का बोझ

उठा नहीं सकता

मरुस्थलीय मृगतृष्णा के

पीछे भाग नहीं सकता

जिस शून्यता की अवस्था में

जी रहा हूँ , क्या उसमे

तुमको पा नहीं सकता ?

आदरणीय हरिप्रकाश जी सुन्दर भाव है |प्रेम के लिए समर्पण ही एकमात्र शर्त होनी चाहिय |सादर अभिनन्दन 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 6, 2015 at 12:01am
प्रेम स्वयं सभी गुणों से ऊपर है, श्रेष्ठ है, बस समझने और स्वीकारने में थोड़ी दिक्कत होती है।
बधाई आपको इस भावाव्यक्ति पर , आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, सादर।
Comment by सूबे सिंह सुजान on January 5, 2015 at 11:29pm

मेरे हृदय के पवित्र भावों को

गुणों-अवगुणों से मत तौलो

मेरे समर्पण को स्वीकार करो

अगर हो सके तो मुझे प्यार करो !............बहुत खूब........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 5, 2015 at 8:40pm

तुमसे जुड़कर ही मेरा

कोई आधार बनेगा

यह गतिहीन जीवन

कुछ आगे बढेगा

सुन्दर पंक्तियाँ ... हार्दिक बधाई स्वीकार करे आदरणीय हरि प्रकाश जी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 5, 2015 at 7:57pm

मेरे हृदय के पवित्र भावों को

गुणों-अवगुणों से मत तौलो

मेरे समर्पण को स्वीकार करो

अगर हो सके तो मुझे प्यार करो !!------ vaah vaah   vaah

 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 5, 2015 at 7:11pm

आपने कविता को पढ़ कर सार्थक प्रतिक्रिया दी उसके लिए हार्दिक आभारी हूँ आपका धन्यवाद आ. महर्षि त्रिपाठी जी !

Comment by maharshi tripathi on January 5, 2015 at 7:00pm

मेरे हृदय के पवित्र भावों को

गुणों-अवगुणों से मत तौलो

मेरे समर्पण को स्वीकार करो

अगर हो सके तो मुझे प्यार करो !!

बेहद उम्दा लाइन ,,,,,,आ. दुबे जी ,,,,

बधाई हो |

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