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मेरे जीवन में वो मौसम, वो दिन और रात कहाँ..

मेरे जीवन में वो मौसम, वो दिन और रात कहाँ,

जो भिगो दे मुझे वो प्यार की बरसात कहाँ।

तेरी बातों में हर इक बात भूल जाते थे,

भला अब तुझमे वो पहली सी हंसीं बात कहाँ।

यूँ तो अब भी तू वही है, ये शब-ओ-रोज़ वही,

दरमियाँ अपने मगर पहले से हालत कहाँ।

देखके तुझको बस तुझमे ही सिमट जाते थे,

अब सिमटने के लिए दिल में वो जज़बात कहाँ।

प्यार के नाम पे चुनते रहे कांटे हरदम,

मेरे दामन में कोई फूलों की सौगात कहाँ।

सज के तारों में जवां रात जो आई थी उषा,

तेरे अरमानों की वो खो गयी बारात कहाँ।

उषा पाण्डेय.

अप्रकाशित व मौलिक.

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 30, 2014 at 1:41pm

अच्छी और  भावपूर्ण गजल पर भाई  शिज्जू "शकूर" और  मिथिलेश वामनकर की  फमाइश सार्थकता ही प्रदान करेगी | रचना के लिए बधाई  आदरणीया उषा पाण्डेय जी 

Comment by somesh kumar on December 30, 2014 at 11:39am

प्यार के जज्बात में डूबी हुई रचना |अच्छे और सादे लफ़्ज इसे ज़्यादा लोगों तक पहुंचाते हैं| थोड़ा सुझावों पर ध्यान दीजिए| सुंदर और सार्थक आपकी कलम से पढ़ने को मिलेगा ऐसा यकीन है 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 29, 2014 at 10:58pm

आदरणीया उषा पाण्डेय जी इस सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 29, 2014 at 10:44pm

आदरणीया उषा जी आपकी किसी पहली रचना से गुजर रहा हूँ. भावाभिव्यक्ति  अच्छी है लेकिन वज्न का पता न होने से रचना तक पहुँच नहीं पा रहा हूँ यदि आप बह्र  भी बता दें तो आनंद और बढ़ जाएगा 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 10:20pm

आदरणीया उषा जी रचना अच्छी है यदि बह्र का उल्लेख कर दें तो लुत्फ़ और बढ़ जाये

Comment by Usha Pandey on December 29, 2014 at 8:51pm

गोपाल जी इस हौसलाफजाई के लिए सादर धन्यवाद.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2014 at 7:58pm

ऊषा जी

 मुझे गजल बहुत अच्छी लगी i  सादर i

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