For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वसुंधरा की त्रासदी/कारण था पतझार

वसुंधरा की त्रासदी,

कारण था पतझार !

वसन्त आगमन हुआ,

उपवन में आया निखार !!

 

प्रफुल्लित हुई नव कोपल,

पल्लव मुस्करा रहे !

सतरंगी सुमनों पर,

भ्रमर हैं मंडरा रहे !!

 

प्रकृति की सात्विक सुन्दरता,

अपनी प्रकृति मैं उतार लें !

आस्था, विश्वास के सूखे,

पल्लव को फिर संवार लें !!

 

संस्कारों की पौध लगा,

धरा को निखार लें !

प्रकृति के सन्देश को,

जन-जन स्वीकार लें !!

 

शिव का सन्देश,

जब गूंजेगा दिग –दिगन्त !

भौतिकता के तम से,

तब होंगे हम स्वतन्त्र !!

 

योग-तप-साधना,

जब होगी अनन्त !

जीवन में छाएगा,

आध्यात्म का वसन्त !!

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”

Views: 457

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on December 29, 2014 at 2:19pm

आपका धन्यवाद सोमेश भाई !

Comment by somesh kumar on December 28, 2014 at 11:12pm

पहली बार में रचना का भावार्थ नहीं समझा |पर दूसरी बार जब गहनता से पढ़ा तो पाया हर पंक्ति गहरा अर्थ लिए है ,प्रकृति के साथ जीवन का समन्वय हो तो जीवन अवश्य सुंदर और पूर्ण-उन्नत होगा |रचना हेतु बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 9:37pm

" "आदरणीय मिथिलेश ,सर ,दरअसल मैं हिंदी साहित्य का विद्यार्थी नहीं रहा ,ज्यादा ज्ञान भी नहीं है ,बस जो मन मैं भाव आते है ,या कभी आये थे ,उन्ही को व्यक्त कर देता हूँ , पर आप जैसे विद्वानों के साथ सीख रहां हूँ ,आनंद आ रहा है ,बहुत कुछ लिखा रिजेक्ट भी हो जाता है ,पर फिर लिखता हूँ , बाकी इससे अपनी कमी जानने का और सुधारने का मौका भी मिलता है , आपकी सलाह पर  छन्द,  कविता की अन्य विधाओं का ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश  जरूर करूंगा, आपका पुनः आभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 8:57pm

आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी आपकी रचना को दुबारा पढ़ा तो आपका शब्द चयन देख अनायास ही विचार आया कि आपकी कलम से पञ्च चामर छन्द सृजित हो और उसे पढने का अवसर अवश्य मिले... सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 8:42pm

आदरणीय इं. गणेश जी "बागी " जी ,किसी भी रचना पर जब आपका समर्थन मिल जाता है तो लगता है की गाडी सही ट्रैक पर है , बहुत बहुत  आभार सर आपका ! सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 8:38pm

"आदरणीय मिथिलेश जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका !"

Comment by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 8:37pm

"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी , उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 8:31pm

प्रकृति के माध्यम से अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति बहुत बहुत बधाई आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 28, 2014 at 7:21pm

बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति, इस रचना के माध्यम से हम दो कदम और प्रकृति की ओर बढ़े, बधाई आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 6:40pm

हरिप्रकाश दूबेजी बहुत खूबसूरती से आपने प्रकृति एवं धरती की त्रासदि को शब्द दिये हैं बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service