वसुंधरा की त्रासदी,
कारण था पतझार !
वसन्त आगमन हुआ,
उपवन में आया निखार !!
प्रफुल्लित हुई नव कोपल,
पल्लव मुस्करा रहे !
सतरंगी सुमनों पर,
भ्रमर हैं मंडरा रहे !!
प्रकृति की सात्विक सुन्दरता,
अपनी प्रकृति मैं उतार लें !
आस्था, विश्वास के सूखे,
पल्लव को फिर संवार लें !!
संस्कारों की पौध लगा,
धरा को निखार लें !
प्रकृति के सन्देश को,
जन-जन स्वीकार लें !!
शिव का सन्देश,
जब गूंजेगा दिग –दिगन्त !
भौतिकता के तम से,
तब होंगे हम स्वतन्त्र !!
योग-तप-साधना,
जब होगी अनन्त !
जीवन में छाएगा,
आध्यात्म का वसन्त !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
आपका धन्यवाद सोमेश भाई !
पहली बार में रचना का भावार्थ नहीं समझा |पर दूसरी बार जब गहनता से पढ़ा तो पाया हर पंक्ति गहरा अर्थ लिए है ,प्रकृति के साथ जीवन का समन्वय हो तो जीवन अवश्य सुंदर और पूर्ण-उन्नत होगा |रचना हेतु बधाई
" "आदरणीय मिथिलेश ,सर ,दरअसल मैं हिंदी साहित्य का विद्यार्थी नहीं रहा ,ज्यादा ज्ञान भी नहीं है ,बस जो मन मैं भाव आते है ,या कभी आये थे ,उन्ही को व्यक्त कर देता हूँ , पर आप जैसे विद्वानों के साथ सीख रहां हूँ ,आनंद आ रहा है ,बहुत कुछ लिखा रिजेक्ट भी हो जाता है ,पर फिर लिखता हूँ , बाकी इससे अपनी कमी जानने का और सुधारने का मौका भी मिलता है , आपकी सलाह पर छन्द, कविता की अन्य विधाओं का ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश जरूर करूंगा, आपका पुनः आभार !
आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी आपकी रचना को दुबारा पढ़ा तो आपका शब्द चयन देख अनायास ही विचार आया कि आपकी कलम से पञ्च चामर छन्द सृजित हो और उसे पढने का अवसर अवश्य मिले... सादर
आदरणीय इं. गणेश जी "बागी " जी ,किसी भी रचना पर जब आपका समर्थन मिल जाता है तो लगता है की गाडी सही ट्रैक पर है , बहुत बहुत आभार सर आपका ! सादर !
"आदरणीय मिथिलेश जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका !"
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी , उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद !
प्रकृति के माध्यम से अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति बहुत बहुत बधाई आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी
बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति, इस रचना के माध्यम से हम दो कदम और प्रकृति की ओर बढ़े, बधाई आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी .
हरिप्रकाश दूबेजी बहुत खूबसूरती से आपने प्रकृति एवं धरती की त्रासदि को शब्द दिये हैं बहुत बहुत बधाई आपको
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