For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - कल पराया जो लगा था, आज प्यारा हो गया ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122     2122     212

अश्क़ ऊपर जब उठा, उठ कर  सितारा हो  गया

जा मिला जब अश्क़ सागर से, वो खारा हो गया

 

चन्द  मुस्कानें  तुम्हारी शक़्ल में  जो पा लिये

आज दिन भर के  लिये अपना ग़ुजारा  हो गया

 

चाहतें जब  इक हुईं , तो  दुश्मनी  भूले  सभी   

कल पराया जो लगा था, आज  प्यारा  हो गया

 

ढूँढ  कर  तनहाइयाँ  हम  यादों  में मश्गूल थे

रू ब रू आये  तो  यादों  का  खसारा हो  गया

 

ख़्वाब में भी देख जो मंज़र, तड़प  जाते थे हम

हर गली , हर चौक में  अब वो नज़ारा हो गया

 

आप  उस बुझते  हुये  से  कोयले को  फूँकिये

एक  दिन  पायेंगे वो  फिर से शरारा हो  गया

 

आँसुओं  को  रात भर  पीते  रहे , मदहोश थे

सुब्ह दम नज़रें  मिलीं , समझो उतारा हो गया

**********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

Views: 865

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 25, 2014 at 9:01am

वाह बहुत खूब कहा है सर

Comment by vandana on December 25, 2014 at 5:00am

आप  उस बुझते  हुये  से  कोयले को  फूँकिये

एक  दिन  पायेंगे वो  फिर से शरारा हो  गया

कमाल की ग़ज़ल और उसका यह नगीना ....प्रणम्य आदरणीय गिरिराज सर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 25, 2014 at 2:27am
ख़्वाब में भी देख जो मंज़र, तड़प जाते थे हम
हर गली , हर चौक में हमको नज़ारा हो गया ।
आप उस बुझते हुये से कोयले को फूँकिये
एक दिन पायेंगे वो फिर से शरारा हो गया ।
बेहतरीन। बधाई आदरणीय गिरिराज बहनदारी जी , सादर।
Comment by harivallabh sharma on December 25, 2014 at 12:25am

वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल का सृजन हुआ आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब...सभी अशआर एक से बढ़कर एक..

आँसुओं  को  रात भर  पीते  रहे , मदहोश थे

सुब्ह दम नज़रें  मिलीं , समझो उतारा हो गया...क्या कहने...लाजबाब..बधाई आदरणीय.

Comment by दिनेश कुमार on December 24, 2014 at 9:43pm
बहुत अच्छी गजल हुई है। वाह सर जी वाह
Comment by somesh kumar on December 24, 2014 at 8:55pm

बेहतरीन गजलों में से एक,ख्याल भी बहुत सुंदर हैं ,ऐसा लग रहा है obo में रोज़ सृजन के नये स्तम्भ बन रहे हैं ,विशेष तौर पे गजलों में इस समय एक से बढ़कर एक गज़ल आ रही हैं |मंच रचने वाले सभी जनों को obo की नई ऊंचाई के लिए बधाई |

Comment by maharshi tripathi on December 24, 2014 at 8:51pm

बहुत ही शानदार गजल ,,,,,,बधाई स्वीकारें |

Comment by Chhaya Shukla on December 24, 2014 at 7:46pm

मेरी पसंदीदा बह पर उम्दा गजल खूब सारी बधाई आदरणीय सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 7:39pm
बेहतरीन मतला
गुजारा और शरारा वाले अशआर बहुत ही उम्दा।
दिल से दाद इस ग़ज़ल के लिए।
आपको इस उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 24, 2014 at 7:05pm
चन्द मुस्कानें तुम्हारी शक़्ल में हम पा लिये
आज दिन भर के लिये अपना ग़ुजारा हो गया


आप उस बुझते हुये से कोयले को फूँकिये
एक दिन पायेंगे वो फिर से शरारा हो गया

वाह क्या खूब क्हा वाह ! लाजवाब!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service