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सूरजमुखी के पास जा / ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

   2212   -    2212

हो  वार  अब  के  दूसरा

बेजार दिल दामन बचा

मेरे  मुकाबिल  तू  खड़ा

कितना मगर तू लापता 

लेकिन  बता  मैं  हूँ कहाँ

चारो  तरफ  मैं  चल रहा

 

ये लब  लरजते   कांपते

इनको मिली अबके सदा

 

जब  जब  यहाँ  दंगें  हुए

तब  तब  हुई कड़वी हवा

 

सूरजमुखी  से  बात कर

सूरजमुखी  के  पास  जा

 

प्यासा  समंदर  मौज से

अक्सर  कहे  जा रेत ला

 

इस  झील  की परवाज़ है

आगोश  में   अर्ज़ो-समा

 

दिल का दिया 'मिथिलेश' क्यूँ
मज़बूर सा जलता रहा

-------------------------------

 (मौलिक व अप्रकाशित)

 © मिथिलेश वामनकर 

-------------------------------

बह्र--ए-रजज़ मुरब्बा सालिम

अर्कान – मुस्तफ्यलुन / मुस्तफ्यलुन

वज़्न –   2212   / 2212  

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Comment

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Comment by मिथिलेश वामनकर on August 18, 2015 at 2:33pm

आदरणीय नितिन गोयल जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई, जानकार आश्वस्त हुआ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. सादर 

Comment by Nitin Goyal on August 18, 2015 at 1:28pm
जब जब यहां दंगे हुए/ तब तब हुई कड़वी हवा...प्यासा समंदर मौज से/ अक्सर कहे जा रेत ला.....बहुत ख़ूब बेहतरीन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 29, 2015 at 3:23am

मेरे सफ़र में सहभागिता के लिए आभार 

आपका स्नेह अभिभूत किये दे रहा है आदरणीय आशुतोष जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 28, 2015 at 1:27pm

इस रचना पर भी हार्दिक बधाई ..आज मैं आपके साहित्यिक सफ़र के साथ सफर कर रहा हूँ उम्दा ..बधाई के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 23, 2014 at 12:08am

आदरणीय शिज्जु सर, आप जैसे ग़ज़लगोई और अरुज के जानकार जब बधाई दे तो दायित्व बहुत बढ़ने लगता है, अभिभूत हूँ आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर. हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 23, 2014 at 12:02am

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर आपको रचना पसंद आई लिखना सार्थक हुआ, आपकी प्रतिक्रिया पाकर बहुत उत्साह मिलता है, आपका ह्रदय से धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 23, 2014 at 12:00am

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर आपकी टिप्पणी देखकर ही दिल खुश हो जाता है.. आपने मेरी हर रचना पर न केवल टिप्पणी की है बल्कि अमूल्य सुझाव भी दिए है आपका हार्दिक आभार. नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 11:47pm

आदरणीय सौरभ सर, 

            आपकी विस्तृत टिप्पणी कई बार पढ़ी.... मेरे रचनाकर्म के लिए आज तक आई सबसे बड़ी टिप्पणी है. लग रहा है जैसे एक सन्देश है गुरु का शिष्य के लिए. ये सन्देश विलम्ब से पढ़ा इसलिए प्रतिक्रिया विलम्ब से देने के लिए क्षमा चाहता हूँ. 

आपने काफ़िया और रदीफ़ के  निर्वहन विषयक जो जानकारी दी, वह अमूल्य है मेरे लिए.

-तकाबुले रदीफ़ का दोष पर सावधानी रखूंगा कि इसे आगे न दोहराऊँ 

-आपके प्रश्नों से सदैव जिज्ञासा बढती है और उसके परिणाम सदैव एक बहुत अनमोल सीख दे जाते है.

-मैंने गज़ल-गुरुओं आदरणीय तिलकराज कपूरजी सर और भाई वीनस केसरी सर के पाठों का अध्ययन आरम्भ कर दिया है.

-आज आपका स्नेह पाकर अभिभूत हूँ ये स्नेह सदैव बना रहे, इसके लिए सदैव सकारात्मक प्रयास और अभ्यास करता रहूँगा 

-मंच के सभी आदरणीय गुनिजन मेरे प्रयास को स्नेह दे रहे है ये मेरा सौभाग्य है. इस स्नेह को कायम रखना और अभ्यास से इस दायित्व को निभाना मेरे लिए स्वमेव आवश्यक हो गया है.

भविष्य में आपका स्नेह सदैव बना रहे यही आशा है. यदि नासमझी में कोई भूल हो जाए तो शिष्य को क्षमा करने का दायित्व आपकों सौपता हूँ. अतिउत्साह में कई बार मेरे जैसे  नौसीखियों से चूक हो जाती है. आपकी सीख और स्नेह के लिए ह्रदय से आभारी हूँ. अभिभूत हूँ आप जैसे गुनीजनों और इस मंच को पाकर. आपका ह्रदय से धन्यवाद, नमन, सादर 

Comment by somesh kumar on December 22, 2014 at 10:59pm

कहने कुछ है ही नहीं ,बस आप मंच के गुरुओं से आशीष ले ऐसे ही बढ़ते जाएँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2014 at 8:53pm

आदरणीय मिथिलेश जी आपकी इस रचना पर कुछ सार्थक चर्चाएँ हुई है़ तदनुरूप सुधार करते हुये आपने जागरूक रचनाकार होने का परिचय दिया है ग़ज़ल तो लाजवाब थी ही अब और निखर के सामने आई है बहुत बहुत बधाई आपको

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