For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अलि, आज छू गया प्रिय से दुकूल !

 

पुलक गया मन महक उठा तन

हंस  रहा  अंतर  का  वृन्दावन

भाव के मेघ उठे सागर की छोर

मन में बरस गए सावन के घन

अम्बर से तारों के फूल गए झूल I

 

बसी नस-नस में पीड़ा की पीर

सुप्त उर हो उठा सहसा अधीर

पाटल से छिल रहा सांवला तन

मन को बेध गया नैनो का तीर

फूलो सा फूल गया अंतस का फूल I

 

मुकुलित है नैन,  अंतस बेचैन

कटते न दिन,  छीजती न रैन

फैला है जग में मावसी तिमिर

देह में सुलग रहा अशरीर मैन

काम विशिख अंतस में देता है हूल I

 

छिड़ गये अंतस की वीणा के तार

तकती मै पन्थ हिय आँगन बुहार

था  लाज का  एक घूंघट सजल 

चुपके से प्रिय आये नैनो के द्वार

देता है मरुत मृदु भावो को तूल I

 

सखि, यदि एक बार होती जो बात

महक उठती मेरी भी सपनीली रात 

मै उनके सीने में निज सिर छिपा

चिर-मुक्त हो जाती बंधन से स्यात्  

मिल जाते दोनों सरिता के कूल I

 

कितना प्रकृत है मन का मिलाप

मेल यह जीवन में बनता है शाप

विभु प्रेम से ही, मिलती है मुक्ति

पर, प्रेम जीव से करना है पाप ?

यही प्रेम है इस संसृति का मूल I

 

जग ने बनाया यहाँ एक व्यवहार 

नहीं नेह पर  जीवात्म अधिकार 

संतुलन बना रहे मनुष्यता के बीच

पहले एक बंधन और एक संस्कार

ताकि पाशव-वृत्ति को हम जाँय भूल I  

 

बनने न पाए कभी प्रेम व्यापार

संहिता सिखाती है अस्तु आचार

पशु और मानव में भेद भी यही

संस्कृति सभ्यता हमारे आधार

भारत में कभी नहीं संयम रहा शूल I 

   

अलि, आज छू गया प्रिय से दुकूल !

 

 (मौलिक/अप्रकाशित )

Views: 815

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2014 at 1:07pm

जवाहर लाल जी

आपका स्नेह यूँ ही मिलता रहे i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2014 at 1:06pm

राम शिरोमणि पाठक जी

आपका अतिशय आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2014 at 1:06pm

आदरणीय बागी जी

आपके प्रोत्साहन से संवर्धित हुआ महसूस करता हूँ i सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 5, 2014 at 9:32pm
बनने न पाए कभी प्रेम व्यापार
संहिता सिखाती है अस्तु आचार
पशु और मानव में भेद भी यही
संस्कृति सभ्यता हमारे आधार
भारत में कभी नहीं संयम रहा शूल I
सारगर्भित , गम्भीर रचना , बधाई आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 5, 2014 at 7:42pm

छिड़ गये अंतस की वीणा के तार

तकती मै पन्थ हिय आँगन बुहार

था  लाज का  एक घूंघट सजल 

चुपके से प्रिय आये नैनो के द्वार

देता है मरुत मृदु भावो को तूल I

 वाह्ह्ह वाह्ह्ह आ० डॉ ० गोपाल जी ,इस नव गीत को कई बार पढ़ चुकी हूँ भावों की सरिता संग संग बहा ले जाती हैं इस अनुपम सृजन के लिए ढेरों बधाई आपको 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 5, 2014 at 7:12pm

अनुपम सृजन! 

कितना प्रकृत है मन का मिलाप

मेल यह जीवन में बनता है शाप

विभु प्रेम से ही, मिलती है मुक्ति

पर, प्रेम जीव से करना है पाप ?

यही प्रेम है इस संसृति का मूल I

हार्दिक अभिनन्दन!

Comment by ram shiromani pathak on December 5, 2014 at 4:10pm

अहा क्या कहने आदरनीय गोपाल जी//अनुपम शब्द सन्योजन//बहुत बहुत बधाइ//सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 5, 2014 at 3:28pm

प्रकृति प्रेम है और प्रेम ही प्रकृति, आहा, क्या खूबसूरत नवगीत प्रस्तुत हुआ है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
3 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
21 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
22 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
23 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
23 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service