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आभास हो  तुम  ........

आभास हो  तुम  विश्वास  नहीं हो
तुम रूठी  तृप्ति  की प्यास नहीं हो
जिन मधु पलों को मौन भी तरसे
तुम उस पूर्णता का प्रयास नहीं हो

आभास हो  तुम  विश्वास  नहीं हो 
तुम रूठी  तृप्ति  की प्यास नहीं हो .........

अतृप्त कामनाओं के स्वप्न नीड़ हो
अभिलाष कलश  के  विरह नीर हो
जिस प्रकाश  को  तिमिर भी तरसे
तुम उस  जुगनू  का प्रकाश नहीं हो

आभास हो  तुम  विश्वास  नहीं हो 
तुम रूठी  तृप्ति  की प्यास नहीं हो ......

पथिक हो  तुम  निर्जीव  राह  के
शूलों  से  आहत   पुष्प  आह के
प्रतिपल  घटती तुम देह छवि हो
तुम जीवन  का मधुमास नहीं हो

आभास हो  तुम  विश्वास  नहीं हो 
तुम रूठी  तृप्ति  की प्यास नहीं हो .....

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 625

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 3, 2014 at 7:42pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई श्री सुशील सरना जी !

Comment by Sushil Sarna on December 3, 2014 at 4:08pm

आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव  जी गीत पर आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 3, 2014 at 4:04pm

आदरणीय Shyam Narain Verma    जी गीत पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 3, 2014 at 4:04pm

आदरणीय  Neeraj Kumar 'Neer'    जी गीत पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। टंकण त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए धन्यवाद। मैंने वो त्रुटि ठीक कर ली है। पुनः आपका आभार। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2014 at 12:29pm

 विमुग्धकारी

जिन मधु पलों को मौन भी तरसे
तुम उस पूर्णता का प्रयास नहीं हो

Comment by Shyam Narain Verma on December 3, 2014 at 12:23pm

बहुत सुन्दर मनमुग्ध करता गीत ...बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Neeraj Neer on December 2, 2014 at 6:02pm

बौट सुंदर प्रस्तुति... एक जगह शायद आहात में टायपिंग की गलती लगती है ।  

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