For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देख रहा था

थकी हुई  बस में

थके हुए चेहरे

गाल पिचके हुए

हड्डियाँ उभरी हुई

अवसादित परिणति में

एक सिगरेट सुलगाली

बढते विकारों पर

मैंने किया प्रदान

अपना उल्लेखनीय योगदान

देख रहा था,

लोगों को चढ़ते-उतरते

सीटों पर लड़ते- झगड़ते

शोरगुल के साथ- साथ

पसीने की दुर्गन्ध भरी है

बस अब भी वहीँ खड़ी है

लोग बस को धकिया रहे हैं

ड्राइवर साहब गियर लगा रहे हैं

धीरे धीरे बस चल रही है  

जैसे उम्र अब शाम की तरह

धीरे –धीरे  ढल रही है

मैं मन को एकाग्र कर रहा हूँ

बहुत बड़ा पुरुषार्थ कर रहा हूँ

मन चाहता है उतर जाना

तभी तुम कुंचित का आना

तुम्हारी अनोखी महक का

बस मैं समां जाना

देख रहा था,

लोगों को प्रेम से

अपनी अपनी सीटों पर

थोडा थोडा सरकते

पर तुमने चुना वही स्थान

जो कुछ देर पहले

बना हुआ था, मेरे लिए

एक मरघट, एक श्मशान

तुम बैठीं पर मुझसे हट कर

सिगरेट फिकवा दी तुमने

मुझ से हठ कर

सिगरेट फेकने के बाद

मैंने सुगंध को जाना

एक नए सत्य को पहचाना

सुगंध के अभाव मैं

लोग दुर्गन्ध फैलाते हैं

न जाने कितने बहाने कर

सिगरेट पीते जाते हैं

तुम सबके जीवन मैं आ जाओ

और मेरी तरह

सबकी सिगरेट लेकर

किसी बस स्टॉप पर

चुपके से उतर जाओ !!

 

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”

Views: 571

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on November 20, 2014 at 12:12pm

आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया एवं प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 20, 2014 at 10:34am

सिगरेट फेकने के बाद

मैंने सुगंध को जाना

एक नए सत्य को पहचाना

सुगंध के अभाव मैं

लोग दुर्गन्ध फैलाते हैं

न जाने कितने बहाने कर

सिगरेट पीते जाते हैं---------इस पंक्तियों के लिए विशेष दाद देना चाहूंगा  सुंदर रचना के लिए हार्दिक  बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 19, 2014 at 9:42pm

उत्साहवर्धन के लिए ,आपका हार्दिक आभार सुश्री राजेश कुमारी जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 19, 2014 at 8:46pm

सिगरेट छुडवाने के लिए बहुत बढ़िया विचार सुगंध के अभाव में लोग दुर्गन्ध फैलाते हैं ...क्या बात है 

बढ़िया अभिव्यक्ति आँखों के समक्ष एक चित्र सा सजीव करती .बधाई आपको 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 19, 2014 at 6:31pm

आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय योगराज जी।

साभार


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 19, 2014 at 11:28am

बहुत खूब आ० हरिप्रकाश दुबे जी।

Comment by somesh kumar on November 19, 2014 at 8:30am

सुंदर अभिव्यक्ति ,मुझे भी इसकी बास नहीं भाती यूँ तो सार्वजनिक वाहनों में कम चलना होता है पर जब यात्रा के दौरान ऐसे लोग मिलते हैं तो उन्हें मना करना पड़ता है .एकाध बार बहस भी करनी पड़ती है ,कितना अच्छा हो लोग दुसरे की असुविधा को समझें और इस व्यसन को सार्वजनिक स्थानों पर करने से बचें |एक बार पुनः बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 18, 2014 at 7:53pm

आपका हार्दिक आभार डॉक्टर विजय शंकर जी ,आशा है आपका स्नेह और मार्गदर्शन हमेशा बना रहेगा l

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 18, 2014 at 7:14pm
मैं मन को एकाग्र कर रहा हूँ
बहुत बड़ा पुरुषार्थ कर रहा हूँ

सुगंध के अभाव मैं
लोग दुर्गन्ध फैलाते हैं
न जाने कितने बहाने कर
सिगरेट पीते जाते हैं
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय हरी प्रसाद दुबे जी , बधाई।
Comment by Hari Prakash Dubey on November 18, 2014 at 6:51pm

आदरणीय डा. साहब ,आपका उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service