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बर्फीली आंधी और पिस्तौल का निशाना

जग को मोहित करने वाला

स्वयं मोहित हो गया है

उसी माया पर  

जिसको रचा था

स्वयं उसी ने

इस जग को मोहने के लिए

उस पर अतिव्यापित

हो गयें हैं अनर्गल प्रलाप

प्रपंचों मैं फंसकर

वह स्वयं मनुष्य बन गया है

उस रंगमंच पर उतर गया है

जिसका अंत हमेशा होता है

परदे का गिर जाना

और किसी व्यक्तित्व का

पात्रों की भीड़ में खो जाना

वह अब मंच पर नाच रहा है

लोगों को हंसा रहा है

कभी रुला रहा है

प्रसिद्धि का नशा

पीते जा रहा है

वह नहीं जानता

इस नशे को पीते-पीते

एक दिन वह

बर्फीली आंधी में खो जाएगा

या फिर किसी की

पिस्तौल का निशाना बन जाएगा !! 

("मौलिक व अप्रकाशित")

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on November 12, 2014 at 8:48pm

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय श्री डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,श्री राम शिरोमणि पाठक जी ,श्री  जितेन्द्र पस्टारिया जी, श्री योगराज प्रभाकर जी  एवं श्री श्याम नारायण वर्मा जी । अभी इस मंच पर नया हूँ समय पर  प्रतिक्रिया भी नहीं दे पा रहा हूँ पर आप लोगों के सहयोग से सीख रहा हूँ ।आपका हार्दिक आभार ।

Comment by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 2:06pm

वाह आदरणीय  बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति  //हार्दिक बधाई आपको 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 7, 2014 at 12:15pm
सुन्दर अभिव्यक्ति आ० हरी प्रकाश दुबे जी।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 7, 2014 at 10:40am

सार्थक प्रस्तुति. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय हरिप्रकाश जी

Comment by Shyam Narain Verma on November 7, 2014 at 10:29am

" अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ................. "

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 6, 2014 at 2:37pm

बहुत मार्मिक i कविता  का अन्त मुखर  सन्देश देता है इआपको  बधाई मित्र i

कृपया ध्यान दे...

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