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गीत : जीवन चुपके से बीत गया*

*जीवन चुपके से बीत गया*

जीवन का जो पल बीत गया
जो पल जीने से शेष रहा
पहचान नहीं कर पाया मन,
पल धीरे धीरे रीत गया
जीवन .....

ऐसे जी लूँ वैसे जी लूँ
जीवन कैसे कैसे जी लूँ
तैयारी मन करता ही रहा,
रोज लिखूँ कोई गीत नया।
जीवन....

सब अंधी दौड़ के प्रतियोगी
योगी मन भी बनते भोगी
अजब निराली मन की तृष्णा,
जब भी जीती मन भीत गया।
जीवन.....

खुद को जानूँ जग को मानूँ
जीवन रहस्य सब पहचानूँ
जग सृजक रहा फिर अनजाना,
वह अंतिम पल फिर जीत गया।
जीवन....
सीमा हरि शर्मा 16.10.2014
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by rajesh kumari on October 17, 2014 at 8:41pm

बहुत सुन्दर गीत ..जीवन की उलझनों को सुन्दरता से शब्द बद्ध किया है ,हार्दिक बधाई आपको सीमा जी 

Comment by somesh kumar on October 17, 2014 at 8:07pm

आज नहीं कल जी लेंगे /इस उलझन में गुब्बारा फुट गया /जीवन ऐसे ही बीत गया 

सुंदर भावपूर्ण गीत |

Comment by Shyam Narain Verma on October 17, 2014 at 10:16am

" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. "

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 17, 2014 at 9:35am

अति सुंदर. जीवन की कश्मकश को बखूबी संजोया आपने. बधाई आदरणीया सीमाहरी जी

Comment by seemahari sharma on October 16, 2014 at 10:14pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी बहुत बहुत आभार आपने गीत पसंद किया।मैं समझती हूँ यह किसी न किसी रूप में हर व्यक्ति के जीवन का यथार्थ चित्रण है सादर
Comment by seemahari sharma on October 16, 2014 at 10:03pm
Pawan Kumar जी बहुत बहुत धन्यवाद गीत पसंद करने के लिये धन्यवाद
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 16, 2014 at 6:57pm

सीमा जी

आप   ?  अभी से जीवन रीत गया जैसी कविता --- i कविता अतीव सुन्दर i भाव सधे  हुए i आपको बधाई  i

Comment by Pawan Kumar on October 16, 2014 at 4:36pm

सुन्दर पँक्तियाँ, सादर बधाई!

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