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मन में लड्डू फूटा (लघुकथा)

"भैया डीजल देना"

"कितना दे दूँ भाईसाब ?"
"अरे भैया दे दो दस पन्द्रह लिटर, देख ही रहे हो आजकल लाईट कितनी जा रही है|  रोज-रोज दूकान के चक्कर कौन लगाये|"
"हा भाईसाब इस सरकार ने तो हद कर दी है|" जैसे उसके दुःख में खुद शामिल है दूकानदार
शाम को वही दूकानदार आरती करते वक्त- "हे प्रभु अपनी कृपा यूँ ही बनाये रखना| यदि साल भर भी ऐसे ही सरकार को बुद्धि देते रहे तो बच्चे की पढ़ाई पूरी हो ही जायेगी प्रभु"

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सविता मिश्र

"मौलिक व अप्रकाशित"


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Comment by Shyam Narain Verma on October 17, 2014 at 10:27am

सुंदर लघु कथा के लिए बधाई ....................

Comment by savitamishra on October 16, 2014 at 7:38pm

सन्देश भाई सत्य बात कहीं आपने ..दिल से आभार आपका पसंद करने के लिए कहानी

Comment by savitamishra on October 16, 2014 at 7:37pm

विनय भाई बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by savitamishra on October 16, 2014 at 7:36pm

गणेश भैया सादर शुक्रिया इस सुझाव का ....बहुत बहुत आभार तहेदिल से !

Comment by savitamishra on October 16, 2014 at 7:35pm

संध्या sis आभार आपका दिल से

Comment by savitamishra on October 16, 2014 at 7:31pm

आदरणीय विजय भैया बहुत बहुत शुक्रिया ..सादर नमस्ते

Comment by विनय कुमार on October 16, 2014 at 12:23pm

किसी की मुसीबत तो किसी की ख़ुशी | बढ़िया लघुकथा..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2014 at 12:20pm

लघुकथा का निहितार्थ एकदम स्पष्ट निकलकर आ रहा है, इस लिहाज से लघुकथा सफल है, यदि तकनिकी शिल्प पर बात की जाय तो डीजल की मात्रा लीटर में न कह के "दो गैलन भर दो" किया जाता, पाठक क्वांटिटी का अंदाजा लगा लेते, वैसे भी १५ लीटर में जेनसेट कितना चलेगा ।
खैर, लघुकथा अच्छी हुई है, इसके लिए बधाई स्वीकार करें।

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 16, 2014 at 9:03am

माननीया सविता जी,
सारगर्भित अभिव्यक्ति । किसी एक का दुःख किसी दूसरे के सुख का कारण हो ही जाता है । हम सब ऐसे ही तो एक दूसरे के पूरक हैं । हार्दिक अभिनन्दन ।

Comment by Dr.sandhya tiwari on October 16, 2014 at 8:47am
Ati uttam

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