For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वक्त

ना रहे जो वक्त तो भी रहेगा वक्त ही

वक्त बेज़ुबां है तो भी कहेगा वक्त ही |

 

यूं तो गुज़र जाता है जिंदगी की तरह

जिंदगी के बाद तो भी रहेगा वक्त ही |

 

मैं उसे थामे चलूँ कितनी भी दूर ही

हाथ मेरा थाम तो भी चलेगा वक्त ही |

 

मेरी हर शै बढे या घटे है हर पल

जितना भी घटे तो भी बढेगा वक्त ही |

 

जो फैला है मार-काट साथ जिंदगी के

मारो किसी को तो भी कटेगा वक्त ही |

 

 (मौलिक और अप्रकाशित)

 

 

 

 

Views: 488

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on October 8, 2015 at 1:24pm

मैं उसे थामे चलूँ कितनी भी दूर ही
हाथ मेरा थाम तो भी चलेगा वक्त ही ----- वक़्त की क्या खूब चित्रण हुआ है आपकी इस रचना में आदरणीय चंद्रेश जी। बिलकुल सही कहा है आपने कहीं कुछ बचे न बचे रहेगा यहां सिर्फ वक़्त ही। क्षणभंगुर जीवन के बहुत खूब कमजोर पक्ष उजागर किये हैं आपने अपने इस रचना माध्यम से। बधाई आपको।

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 4, 2014 at 3:17pm

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण जी, आपका ह्रदय से धन्यवाद| सही याद किया आपने| वक्त के ही दिन-रात-कल-आज हैं ये सभी वक्त से ही तो बने हैं|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 4, 2014 at 3:15pm

आपका हार्दिक आभार, महिमा श्री जी !!

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 4, 2014 at 3:14pm

आदरणीय Dr. Vijai Shankar जी, आपका हार्दिक आभार !! सुन्दर विश्लेषण किया आपने, ज़िन्दगी एक संयोग है जिसमें वक्त की भी भूमिका है| सही है.. जीवन में वक्त की भूमिका है और वक्त में जीवन की| पुनः धन्यवाद !

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 4, 2014 at 3:12pm

आदरणीय जितेन्द्र जी, आपका हार्दिक आभार !!

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 8:06am

ना रहे जो वक्त तो भी रहेगा वक्त ही

वक्त बेज़ुबां है तो भी कहेगा वक्त ही |

 

यूं तो गुज़र जाता है जिंदगी की तरह

जिंदगी के बाद तो भी रहेगा वक्त ही |.....वाह ...बेहद उम्दा ..वक्त को बहुत ही खूबसूरती से पेश किया है ..हार्दिक बधाई स्वीकार करे 

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 26, 2014 at 2:49pm

वक्त फिल्म का गाना यादा गया - वक्त के दिन और रात i वक्त के कल और आज i --- सुन्दर रचना i

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 26, 2014 at 2:02pm

वक़्त के बारे में यह सवाल बहुत उठता है , पर जिंदगी है क्या , एक संयोग जिसमें वक़्त की भी भूमिका है , शायद सबसे बड़ी भूमिका है , वक़्त है
तो है। नहीं तो,नहीं है।
ना रहे जो वक्त तो भी रहेगा वक्त ही
वक्त बेज़ुबां है तो भी कहेगा वक्त ही |

बधाई आदरणीय चंद्रेश कुमार छटलानी जी।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 26, 2014 at 11:29am

यूं तो गुज़र जाता है जिंदगी की तरह

जिंदगी के बाद तो भी रहेगा वक्त ही......बहुत गहरी बात कही. बधाई आदरणीय चंद्रेश जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service