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दिल ही न टूट जाये कहीं ऐतबार में-ग़ज़ल

221 2121 1221 212

जाने पड़ा हुआ है तू किसके खुमार में

दिल ही न टूट जाये कहीं ऐतबार में

 

मैं नाम लौहे दिल पे यूँ लिखता गया तेरा

इसके सिवा रहा नहीं कुछ इख़्तियार में

 

वो कारवाने वक्त गुज़र तो गया मगर  

पामाल हसरतें थी नुमायाँ गुबार में

 

तपती हुई ज़मीं को मिले राहतें ज़रा

वो नर्मियाँ नहीं है न ठण्डक फुहार में

 

खुद रहनुमाई अपनी करो ढ़ूँढो रास्ता

बेजा है बैठना किसी के इंतिज़ार में         

 

किस पर यकीन हो किसे अपना कहूँ “शकूर”                                                                                                                               

हर गाम राहजन ही मिले रहगुज़ार में

 

लौहे दिल= हृदय पटल               

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 17, 2014 at 9:25pm

शिज्जू भाई

नख से सिख तक सुन्दर गजल i

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 17, 2014 at 8:58pm
बहुत ही सुन्दर .
जाने पड़ा हुआ है तू किसके खुमार में
दिल ही न टूट जाये कहीं ऐतबार में
बहुत बहुत बधाई आदरणीय शिज्जु शकूर जी .

कृपया ध्यान दे...

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