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छोटी बह्र की एक ग़ज़ल-रात

जैसे जैसे बिख़री रात,
बिस्तर बिस्तर पिघली रात.
.

चाँद के साथ बदलती रँग,
काली भूरी कत्थई रात.
.

चाँद ज़मीं पर उतरा था,
हुई अमावस पिछली रात.
.
एक शम’अ थी साथ मेरे,  
फिर भी तन्हा सुलगी रात.
.

आते आते ख्व़ाब तेरे,
दामन से क्यूँ फ़िसली रात.

.
दौर चलेंगे यादों के,
लिया करेगी हिचकी रात.  
.
पिया गए परदेस सखी,
भीगी सहमी सिसकी रात.    
.

रात के बाद सवेरा है,
सुब्ह से पहले गहरी रात.
.
निलेश "नूर"

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 2:40pm

:):) आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 2:36pm

कई बार होता है.. हम ’उन’ गलियों में एक बार फिर टहल आते हैं..

आज वैसा ही मन कर गया.. :-))

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 2:27pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर.. 
आज कुदाल फावड़े ले कर कहाँ मोएन-जो-दारो की ख़ुदाई पर निकल आए आप :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 2:02pm

कई शेर बहुत महीन हैं. बहुत-बहुत महीन.

आदरणीय नीलेशजी, आपकी इस ग़ज़ल पर क्या कहूँ, बस मुग्ध हूँ. .. दौर चलेंगे यादों के / लिया करेगी हिचकी रात !
जय हो..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 17, 2014 at 5:30pm

धन्यवाद आ. डॉ आशुतोष मिश्रा जी ..
मात्रा क्रम है 22/22/22/2 +1 (ऑप्शनल)

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 17, 2014 at 5:29pm

धन्यवाद आ. राम शिरोमणि पाठक जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 17, 2014 at 2:54pm

आदरणीय नीलेश जी ..हर शेर बेहद भाया //कृपया मात्रिक क्रम लिखने का कष्ट करें ..धन्यवाद और सादर बधाई के साथ 

Comment by ram shiromani pathak on August 17, 2014 at 10:31am

वाह भाई नीलेश जी बहुत ही प्यारी ग़ज़ल ........      हार्दिक बधाई आपको

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 15, 2014 at 12:20pm
शुक्रिया आ सौरभ सर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 15, 2014 at 12:19am

ऐसी प्रस्तुतियों पर महज़ वाह-वाह नहीं करते, इन्हें गुनते हैं. मुग्ध हूँ, आदरणीय नीलेशजी.

सादर

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