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ग़ज़ल ..आँख मूँदते ही ....सारे ख़ुदा गए.

ग़ज़ल ..
गाल गाल गा गा ///// गा गा लगा लगा  
मक्ते से पहले वाले शेर में तकाबुले रदीफ़ है लेकिन solution के आभाव में उसे ऐसे ही स्वीकार किया है. 
.
रंग हम जहाँ में क्या क्या मिला गए
हार कर लो खुद को सब को जिता गए.
.

सब कहें पुराना किस्सा सुना गए,
गो बता के सबकुछ सबकुछ छुपा गए.
.

कुछ कहार मिलकर कमरा सजा गए,
और फिर उसी में तन्हा सुला गए.
.

ख़ाक सबने डाली इसका गिला करें क्या,
हाड माँस मिट्टी, मिट्टी बिछा गए.
.

बाद के सफ़र में मत पूछ क्या हुआ,
आँख मूँदते ही सारे ख़ुदा गए.
.

चाक पर फ़रिश्ते घडने लगे मुझे,
फिर नया ठिकाना मुझ को बता गए.
.

वो जहां अलग था, है ये जहां अलग
'नूर' तुम थे कैसे, क्या होके आ गए.

.
निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 9, 2014 at 4:26pm

बा-नूर ---

बहुत आध्यात्मिक गजल ---

मक्ता सुभान अल्लाह i हार्दिक बधाई i

 

 

 

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