For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दृष्टि   मिलन  के  प्रथम पर्व में

दृप्त    वासना   नभ   छू   लेती

पागलमन   को   बहलाता   सा

जग  कहता   नैसर्गिक   सुख है I

 

क्या  निसर्ग  सम्भूत  विश्व  में

क्या स्वाभाविक और सरल क्या

वाग्जाल   के    छिन्न   आवरण

में     मनुष्य   की   दुर्बलता    है I

 

बुद्धि   दया   की   भीख मांगती

ह्रदय    उपेक्षा    से    हंस    देता

मानव !    तेरी      दुर्बलता    का

इस    जग   में   उपचार   नहीं  है I

 

संस्कार    है    गत    जन्मो   का

या   फिर     है   अँधा    आकर्षण

छल   भी   नहीं   न   है  सम्मोहन

मनुज    हृदय   का    पाप  प्रेम   है I

 

 

[मौलिक व् अप्रकाशित ]

Views: 702

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 3, 2014 at 9:25pm

बहुत ही सुंदर रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय डा.गोपाल जी

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 3, 2014 at 9:24pm

संस्कार    है    गत    जन्मो   का

या   फिर     है   अँधा    आकर्षण

छल   भी   नहीं   न   है  सम्मोहन

मनुज    हृदय   का    पाप  प्रेम   है I

अनेक लहजों में परिभाषित प्रेम - अनूठी रचना!

Comment by ram shiromani pathak on August 3, 2014 at 8:21pm

सुन्दर प्रस्तुति  आदरणीय।हार्दिक बधाई आपको। ।   सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:59pm

महनीया

आभार प्रकट करता हूँ I

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:56pm

शिज्जू भाई

आपकी साहित्यिक समझ उच्चकोटि की है i आपसे संस्तुति मिलना ह्रदय को सुकून देता है I

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:54pm

डा0  विजय जी

आपको प्रणाम  एवं आपका आभार i  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:52pm

आदरणीय सन्तिलाल जी

आपकी टीप ही इस सत्य का प्रमाण है की आप कविता के मर्म तक गए हैं i आपका शत-शत आभार i

Comment by Meena Pathak on August 2, 2014 at 3:18pm

अनुपम .......सादर बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 2, 2014 at 11:09am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर बहुत सुंदर रचना है, बिम्बों व प्रतीकों का सहज प्रयोग एवं रवानी ने रचना में जान डाल दी है बहुत बहुत बधाई आपको
सादर,

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 1, 2014 at 10:47pm
प्रशंसनीय , आकर्षक , बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
3 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
21 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
22 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
23 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
23 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service