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है सफ़र में काफ़िला पर रहनुमा कोई नहीं-ग़ज़ल

2122- 2122- 2122- 212

नक्श भी कोई नहीं औ' रास्ता कोई नहीं

है सफ़र में काफ़िला पर रहनुमा कोई नहीं

 

भीड़ चेहरे सिर्फ़ कहने के लिये मौजूद हैं

घूम के देखा मगर मुझको मिला कोई नहीं

 

आशनाई बस ज़रूरत की है रिश्ते नाम के

इनका अब जज़्बात से ही वास्ता कोई नहीं

 

नफ़रतों के ज़ह्र में डूबी ज़बाँ के तीर का

आदमीयत है निशाना दूसरा कोई नहीं

 

सिर्फ़ बातों से बहल जायें यहाँ कुछ लोग तो

सच सुने कोई नहीं सच देखता कोई नहीं

 

साँस में भरता धुआँ काली कबा है गर्द से

उसपे यारो ये सितम पत्ता हरा कोई नहीं

 

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 23, 2014 at 10:38am

आदरणीय सौरभ सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 7:02pm

नफ़रतों के ज़ह्र में डूबी ज़बाँ के तीर का

आदमीयत है निशाना दूसरा कोई नहीं,.. वाह !

ढेर सारी दाद कुबूल करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2014 at 12:07pm

आदरणीय निलेश भैया आपका तहेदिल से शुक्रिया आपने तो मेरी हैसियत से बढ़कर उपाधि दे दी :-)

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 1:59pm

क्या बात है "उस्ताद" 
बहुत शानदार ग़ज़ल कही है ...
दिल से बधाई.... स्वीकार कीजिये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 7:34pm

आदरणीया कल्पना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 7:33pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर रचना को मान देने के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 7:32pm

आदरणीय अमित भाई आपका हार्दिक आभार

Comment by कल्पना रामानी on July 10, 2014 at 7:09pm

गज़ल का हर शेर उम्दा और शानदार है, आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय शिज्जु जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2014 at 2:59pm

शिज्जू  भाई

बेहतरीन i बहुत सुन्दर i

आशनाई बस ज़रूरत की है रिश्ते नाम के

इनका अब जज़्बात से ही वास्ता कोई नहीं

 

नफ़रतों के ज़ह्र में डूबी ज़बाँ के तीर का

आदमीयत है निशाना दूसरा कोई नहीं

Comment by अमित वागर्थ on July 10, 2014 at 11:03am

बहुत खूब .... बेहतरीन ग़ज़ल है भाई

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