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ताज़ा लहू के सुर्ख़ निशाँ छोड़ आया हूँ

221 2121 1221 212

ताज़ा लहू के सुर्ख़ निशाँ छोड़ आया हूँ

हर गाम एक किस्सा रवाँ छोड़ आया हूँ

 

वो रोज़ था, मुझे न मयस्सर ज़मीं हुई

ये हाल है कि अब मैं जहाँ छोड़ आया हूँ

 

परदेस में लगे न मेरा मन किसी तरह

बच्चों के पास मैं दिलो-जाँ छोड़ आया हूँ

 

उड़ती हुई वो ख़ाक हवाओं में सिम्त-सिम्त

जलता हुआ दयार धुआँ छोड़ आया हूँ                   दयार= मकान

 

मौजूदगी को मेरी तरसते थे रास्ते

चलते हुये उन्हें मैं कहाँ छोड़ आया हूँ

 

दुश्वारियाँ सफर में बहुत हैं ''शकूर'' पर

मैं हौसलों के दम पे अमाँ छोड़ आया हूँ                अमाँ= सुरक्षा

 

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 2, 2014 at 8:13am

आदरणीय विजय निकोर सर आपका तहेदिल से शुक्रिया स्नेह बनाये रखें

Comment by vijay nikore on July 1, 2014 at 3:35pm

//लहू के सुर्ख़ निशाँ छोड़ आया हूँ

हर गाम एक किस्सा रवाँ छोड़ आया हूँ//

 

इस अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक बधाई।


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:13pm

आदरणीय गिरिराज सर रचना पर आपकी आमद से ही खुशी मिलती है आपका बहुत बहुत शुक्रिया स्नेह बना रहे।


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:12pm

आदरणीय निलेश भाई आप जैसे रचनाकार के द्वारा सराहना मिलना भी उत्साहवर्धन का एक कारण है आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:10pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:10pm

आदरणीय गणेश जी आपकी आमद एवं हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:09pm

आदरणीया वंदना जी रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:08pm

आदरणीया राजेश दीदी उत्साहवर्धक शब्दों द्वारी रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 30, 2014 at 6:29pm

आदरणीय शिज्जु भाई , बहुत खूब , लाजवाब ग़ज़ल कही ।

वो रोज़ था, मुझे न मयस्सर ज़मीं हुई

ये हाल है कि अब मैं जहाँ छोड़ आया हूँ

दुश्वारियाँ सफर में बहुत हैं ''शकूर'' पर

मैं हौसलों के दम पे अमाँ छोड़ आया हूँ    ----------- हार्दिक बधाई स्वीकार करें ॥

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 30, 2014 at 5:47pm

बहुत खूब शिज्जू जी ..मुश्किल बह्र, मुश्किल काफ़िया और शानदार ग़ज़ल .
बहुत बहुत बधाई 

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