For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िन्दगी की ढिबरी ... (विजय निकोर)

ज़िन्दगी की ढिबरी

डूबती संध्याओं की उदास झुकी पलकों में

एक रिश्ते-विशेष के साँवलेपन की झलक

बरतन पर लगी नई कलाई की तरह

हर सुबह, हर शाम और रात पर चढ़ रही, मानो

गम्भीर उदास सियाह अन्तर्गुहाओं में व्याकुल

मूक अन्तरात्मा दुर्दांत मानव-प्रसंगों को तोल रही

रिश्ते के साँवलेपन में समाया वह दानवी दर्द

अतीत की आँखों से टपक-टपक कर अब

क्यूँ है मेरी रुँधी हुई आवाज़ में छलक रहा

बहा होगा आज फिर से ज़रूर घड़े के बाहर

हृदय में सोई व्यथित वेदना का अन्तर्प्रवाह

सोचते घबरा जाता है भयभीत अंत:स्वर मेरा

अतीत के क्रूरतम कटुतम आत्मीय अनुभव

साक्षी वह मेरी जीवनावस्था के प्रमाण अनुक्षण

उनको भुला देना, मिटा देना, है समयानुकूल, पर

स्नेह के कठिन निषक्रम मार्गों को अनुभूत करती

निज से लड़ रही लहर एक दर्द की दोड़ जाती है

छा जाती है सांझ संकल्पों पर, लिए उदासी का रंग

हमारे बचपन के स्नेह के रहस्य को छिपाय

किराये के उन सुकुमार स्वपनों की आत्मा,

द्रुतगामी समय पर फैलता घुँघराला कुहरा ...

ज़िन्दगी की ढिबरी में अब तेल कम बचा है

उखड़ी ज़िन्दगी के उदयास्त से उद्विग्न

मेरे कन्धे पर यूँ सिर टेक कर प्रिय

संतप्त, तुम कब तक रोओगी ?

                ---------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1063

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on July 1, 2014 at 3:14pm

//अन्तः वेदना को जीते इससे बेहतर शब्द क्या होंगे !! आपकी हर रचना देर तक पाठक को बांधे रहती है यही खासियत है आपके लेखन में//

इन आत्मीय शब्दों से मेरे लेखन-क्रम को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश जी।

Comment by vijay nikore on June 30, 2014 at 1:24pm

//बहुत ही अच्छा संजोया है आपने दृष्टिकोण  , पुराने कष्ट के दिनों की भी स्मृतियाँ मधुर होती हैं //

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विजय जी।

Comment by vijay nikore on June 30, 2014 at 1:21pm

//उफ्फ़ ! ज़िंदगी के दहकते पृष्ठों को अपने साँसों के आखिरी लम्हों में बड़ी ही ख़ूबसूरती और मार्मिकता से दर्शाया है//

आपने रचना के मर्म को इस प्रकार जाना, और मान दिया ... आपका हार्दिक आभार आदरणीय सुशील जी।

Comment by vijay nikore on June 29, 2014 at 12:24pm

//अद्भुत, अजगुत, अद्वितीय , अनुपम , अनिवर्चनीय  i आपका प्रेम  पूजा का उपादान है  i  सच पूछिए तो  मेरी श्रद्धा आपके प्रेम की अनुगामिनी है  //

ऐसी सराहना से मेरी रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

आपके गीत की पंक्तियाँ अति सुन्दर भाव संजोय हैं। पूरा गीत पढ़ने को मन है।

Comment by vijay nikore on June 29, 2014 at 12:19pm

//वाह ! आत्मा का वास जैसे किराए पर कमरा ले कर निवास ...  बहुत सुन्दर भाव उढेले है आपने रचना में//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by विजय मिश्र on June 26, 2014 at 4:20pm
"अतीत की आँखों से टपक-टपक कर अब
क्यूँ है मेरी रुँधी हुई आवाज़ में छलक रहा
बहा होगा आज फिर से ज़रूर घड़े के बाहर
हृदय में सोई व्यथित वेदना का अन्तर्प्रवाह|"
- अति गहन भावों का एक और सृजन |स्मृति ही सभी आंतरिक व्यथाओं ,विपदाओं की बहनी हैं जो हमें निरंतर कूहती है ,कूहकाती है और शायद रुलातीं भी हैं |नितान्त पीड़ादायी स्मृति वृतान्त |सफल संप्रेषण हेतु अनेक बधाई विजयजी |
Comment by annapurna bajpai on June 25, 2014 at 6:25pm

बहुत ही सुंदर मनोभाव के साथ सुंदर रचना , बहुत बधाई स्वीकारें । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 24, 2014 at 4:52pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , ज़िन्दगी की डिबरी के पूरा तेल होने से लेकर  अब कम तेल बचने तक की अमिट प्रेम की विरह गाथा को लाजवाब शब्द मिले हैं । आपकी भाव भूमि तक उतरते सांस फूल जा रही है । बहुत बहुत बधाई आपको ।

Comment by coontee mukerji on June 24, 2014 at 1:25am

अनूठी रचना.....यह आप की हो सकती हैआदरणीय विजय जी....आपको अनेक साधुवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2014 at 9:15pm

रिश्ते के साँवलेपन में समाया वह दानवी दर्द

अतीत की आँखों से टपक-टपक कर अब

क्यूँ है मेरी रुँधी हुई आवाज़ में छलक रहा

बहा होगा आज फिर से ज़रूर घड़े के बाहर

हृदय में सोई व्यथित वेदना का अन्तर्प्रवाह

सोचते घबरा जाता है भयभीत अंत:स्वर मेरा-----अन्तः वेदना को जीते इससे बेहतर शब्द क्या होंगे !! आपकी हर रचना देर तक पाठक को बांधे रहती है यही खासियत है आपके लेखन में .बहुत - बहुत बधाई आपको आ० विजय निकोर जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service