For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काल-धारा ...(विजय निकोर)

काल-धारा

मेरा स्नेह तुम्हारी ज़िन्दगी के पन्ने पर देर तक

स्वयं-सिद्ध, अनुबद्ध

हलके-से हाशिये-सा रहा यह ज़ाहिर है

ज़ाहिर यह भी कि जब कभी

अपने ही अनुभवों के भावों के घावों को

विषमतायों से विवश तुम चाह कर भी

छिपा न सकी

हाशिये को मिटा न सकी

मिटाने के असफ़ल प्रयास में तुम

घुल-घुल कर, मिट-मिट कर

ऐंठन में हर-बार कुछ और

स्वयं ही टूटती-सी गई

 

टूटने और मिटने के इस क्रम में

हाशिये में कभी झोल-सा पड़ा दर्द का

कभी उसकी पारमिता,

उसकी दृढ़ता, उसकी गहराई

बढ़ती निखरती तुम्हारे अस्तित्व के गिर्द

ज़िद्दी बेल-सी लिपटती चली गई

 

समय की थिरकती-सिहरती थपथपी

अदृश्य तुम्हारे अश्रुओं की कँपकँपी ...

मानव-सम्बन्ध के सहज आनंद की

पूजा के दिय की लौ -सी

अरुणायित शोभा ...

यह हाशिया भी अब वही हाशिया न रहा

मिटाय-न-मिटते जामुन के पक्के

रंग-से-रंगे कपड़े-सा

तुम्हारे शुद्धतम आँचल-सा विशुद्ध स्नेह मेरा

अब हृदय-प्रकाश तुम्हारा बना, और

गहन विश्वास की तहों में स्नेह तुम्हारा

मेरे हृदय की कमल-पँखुरी में है समाया

 

आत्माओं में बहती-सी लगती है नई उमंग

सोचता हूँ  यह नियति की अनुभूति है या

है यह बहती सुखप्रद प्रतिपल

असामान्य जगत-काल-धारा...

 

             ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 1027

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on June 17, 2014 at 6:41am

//अंतर्मन की शुद्ध मनोदशा को शाब्दिक करता आपका प्रयास अभिभूत करता है//

यह शब्द किसी भी रचनाकार के लिए अमूल्य हैं। रचना की सराहना द्वारा मुझको

इतना मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ भाई।

Comment by vijay nikore on June 16, 2014 at 8:05am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय श्याम वर्मा जी।

Comment by vijay nikore on June 11, 2014 at 12:07pm

//अगले के हृदय की वेदना का इतनी सूक्ष्मता से अवलोकन...फिर उसका वर्णन,इतनी गहराई से,इतने प्रभावी बिम्बों के माध्यम//

//आपकी रचना के कुछ शब्द,बिम्ब और भाव दिमाग़ में तैर रहे थे...मन किया पुनः रसास्वादन करूं..इसलिए पुनः ब्लॉग पर आयी।//

सर्वप्रथम आपका रचना के मर्म को सूक्षमता से जानना, और फिर इस रचना को पढ़ने बार-बार आना.........इतना मान !

आपका हृदयतल से आभार, आदरणीया विन्दु जी। सुखी रहें।

Comment by vijay nikore on June 11, 2014 at 12:01pm

//सुन्दर और गहन भाव ..जिंदगी को खूबसूरत शब्दों से बाँधा है आप ने//

यह कह कर रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र जी।

Comment by vijay nikore on June 9, 2014 at 6:50am

//आपको पढ़ना ही खुद में एक नया अनुभव है ....एक एक एहसास लफ़्ज़ों में ऐसे उकेरा है अपने जैसे .....दीये में एक एक बूंद जलती है रौशनी के लिए//

आदरणीया प्रियंका जी, आप सदैव मेरी रचनाओं को इतना मान देती हैं, आशा है कि यही स्नेह बनाए रखेंगी। हृदयतल से आपका आभार।

Comment by vijay nikore on June 9, 2014 at 6:47am

//गहन आंतरिक प्रेम की अनुभूतियों को प्रकट करती आपकी सुन्दर अभिव्यक्ति//

रचना को इस प्रकार  मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

Comment by vijay nikore on June 7, 2014 at 8:29pm

//मन को गहरे छूती रचना//

रचना की भावनाओं को छूने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।

Comment by vijay nikore on June 7, 2014 at 8:26pm

//अटूट विशासों के बंधी डोर की सुंदर रचना //

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

आशा है स्नेह बनाए रखेंगे।

Comment by vijay nikore on June 6, 2014 at 7:13am

//बहुत सुन्दर.. गहन भाव धारण किये  प्रस्तुति//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नीरज जी।

Comment by vijay nikore on June 6, 2014 at 7:12am

//शब्दों और सुंदर भावों को बहुत ही खूबसूरती से संजोया//

इस मान के लिए मैं आपका आभारी हूँ, आदरणीय जितेन्द्र जी। आशा है स्नेह बनाए रखेंगे।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तमाम जी, हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति , स्नेह और मार्गदर्शन के लिए आभार। मतले पर आपका…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service