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आदरणीय विजय मिश्र जी मौजूदा पर्यावरण की स्थिति को देखते हुये आपका ये लेख प्रासंगिक है आपने मूल बातों को बखूबी सामने रखा है बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय विजय मिश्र जी आपने एक बहुत ही सही विषय पर अपना लेख साझा किया है, सच यह एक बहुत चिंता का विषय है. किन्तु इंसान आज के इन संसाधनों का इतना आदि हो चूका है की वह एक सुख के लिए कई दुखों को जन्म देता जा रहा है,जिनका भोग हम आप सबको भोगना पड़ेगा.
सादर!
बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख है......विडंबना ये है कि एक बसावन है तो दस उजारन....किसे क्या कहें..उनकी गलती सबको भुगतना पड़ता है....हमने पेड़ों को कटते देखा...नये लगते भी देखा....मगर धूप से झुलसते हुए....सादर.
विजय मिस्र जी
पंचभूतों के औपनिषदीय विवेचन केसाथ हे उसके प्रत्येक तत्व के प्रदूषण पर आपके द्वारा जताई गयी चिंता बड़ी अर्थपूर्ण है i आपको धन्यवाद i
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