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वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है

1222  122  1222  122

वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है

परिन्दा दर ब दर बेसहारा हो गया है

 

हवस दुनिया की बरबाद कर देती उसे भी

चलो मुफ़लिस की बेटी का रिश्ता हो गया है

 

गरीबी थी कि मजबूरी थी बच्चे की कोई

वो लड़का बोझ से ही सयाना हो गया है

 

है बन्जर चाँद तो ताज में है सिर्फ कब्रें

लो हुश्नो इश्क का भी खुलासा हो गया है

 

हैं लालच बैर नफ़रत भरा इस दिल मैं अब तो

मुहब्बत के लिए मार्ग सँकरा हो गया है

 

खबर मरने की आएगी अखबारों में उसके

सियासत के लिए अब वो खतरा हो गया है

 

है गम तुझको बिछड़ने का मुझसे मेरे यारा

कि खत में स्वाद शब्दों का खारा हो गया है

 

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

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Comment

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Comment by vandana on May 31, 2014 at 6:04am

वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है

परिन्दा दर ब दर बेसहारा हो गया है

 

हवस दुनिया की बरबाद कर देती उसे भी

चलो मुफ़लिस की बेटी का रिश्ता हो गया है

 

गरीबी थी कि मजबूरी थी बच्चे की कोई

वो लड़का बोझ से ही सयाना हो गया है

विचारपूर्ण बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय 

Comment by Sushil Sarna on May 30, 2014 at 6:33pm

है गम तुझको बिछड़ने का मुझसे मेरे यारा
कि खत में स्वाद शब्दों का खारा हो गया है
……गज़ब गज़ब। …। लफ़्ज़ों में छुपे भाव दिल को छू गए .... कायल हो गए आपकी इस खूबसूरत अशआरों से भरे गुलदस्ते के … हार्दिक बधाई इस सुंदर सृजन के लिए आदरणीय गुमनाम पिथौरगढ़ी जी।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 30, 2014 at 5:33pm
है गम तुझको बिछड़ने का मुझसे मेरे यारा
कि खत में स्वाद शब्दों का खारा हो गया है बहुत बढिया ..हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 30, 2014 at 12:23pm

हवस  दुनिया की बर्बाद कर देती उसे भी

चलो मुफलिस की बेटी का रिश्ता हो गया है i

और

है बंजर चाँद और ताज में है शिर्फ़ कब्रे

लो हुश्नो-इश्क का भी खुलासा हो गया है ----- आपकी अविस्मरनीय पंक्यिया है  i बहुत बहुत बधाई i मेरे भाई i

Comment by Shyam Narain Verma on May 30, 2014 at 10:21am
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई 

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