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212 1222 212 1222

हर अदा, हवाओं की शोखियाँ समझती हैं

बेखबर नहीं सबकुछ पत्तियाँ समझती हैं

 

थरथराने लगती हैं इक ज़रा छुअन से ही

बागबाँ है या भँवरे डालियाँ समझती हैं

 

दर्द कितना है कैसा लग रहा है मुझको ये

मेरे ज़ख़्म से लिपटी पट्टियाँ समझती हैं

 

आजकल निगाहों को क्या हुआ ज़माने की

तज़्रिबे को चेहरे की झुर्रियाँ समझती हैं

 

हसरतें हदों को ही भूलने लगी हैं आज

फिक्र को बड़ों की वो बेड़ियाँ समझती हैं

 

ख़ौफ़ के मनाज़िर को सुब्ह की ख़बर मे यूँ

दौड़ती हुई नज़रें सुर्खियाँ समझती हैं

 

गर दुआ भी दी जाये तो बुरा लगे है क्यूँ

नफ़रतें मुहब्बत को गालियाँ समझती हैं

 

क्यूँ उन्हें मेरी बातों से शिकायतें इतनी

हाले दिल मेरा मेरी सिसकियाँ समझती हैं

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by नादिर ख़ान on May 28, 2014 at 9:18pm

क्या बात है जनाब शिज्जु भाई, हमेशा की तरह लाजवाब प्रस्तुति.... हर शेर कीमती है ।

बहुत मुबारकबाद ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 28, 2014 at 2:41pm

शिज्जू जी

  नफरते  मुहब्बत को गालिया समझती है i  बहुत खूब i पूरी गजल पर फ़िदा हूँ i आमीन i

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2014 at 2:40pm

आदरणीय शिज्जू जी
ख़ौफ़ के मनाज़िर को सुब्ह की ख़बर मे यूँ
दौड़ती हुई नज़रें सुर्खियाँ समझती हैं...बेहतरीन
भावों से भरी इस सुंदर ग़ज़ल के लिए मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनायें सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 28, 2014 at 12:03am

वाह! क्या खूब गजल कही है आपने, हर एक शेर दिल को छू जाता है तहे दिल से बधाई आदरणीय शिज्जू जी

Comment by Vindu Babu on May 27, 2014 at 11:14pm

हृदय स्पर्शी गजल लिखी है आपने शिज्जू जी।

सादर बधाई आपको।

Comment by Meena Pathak on May 27, 2014 at 10:55pm

बहुत बहुत उम्दा ..... हार्दिक बधाई आ० शिज्जू जी | सादर

Comment by coontee mukerji on May 27, 2014 at 5:41pm

हर अदा, हवाओं की शोखियाँ समझती हैं

बेखबर नहीं सबकुछ पत्तियाँ समझती हैं.....बहुत खूब.

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on May 27, 2014 at 4:54pm

ख़ौफ़ के मनाज़िर को सुब्ह की ख़बर मे यूँ

दौड़ती हुई नज़रें सुर्खियाँ समझती हैं

  वाह्ह क्या बात है खूब कही है, बहुत बहुत बधाई।

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