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हर ग़ज़ल अच्छी बनेगी ये जरूरी तो नहीं

२१२२ २१२२ २१२२ २१२
हर ग़ज़ल अच्छी बनेगी ये जरूरी तो नहीं
दुनिया मुझको ही पढेगी ये जरूरी तो नहीं

फ़ौज सरहद पे खडी हो चाहे दुश्मन की तरह
कोई गोली भी चलेगी ये जरूरी तो नहीं

आज सागर हाथ में माना कि मेरे दोस्तों
प्यास पर मेरी बुझेगी ये जरूरी तो नहीं

इन चिरागों में भरा हो तेल कितना भी भले
रात भर बाती जलेगी ये जरूरी तो नहीं

आज उसकी ही खता है खूब है उसको पता
मांग पर माफी वो लेगी ये जरूरी तो नहीं

जोड़ लो दुनिया की दौलत जीत लो हर जंग ही
जिन्दगी हँस के कटेगी ये जरूरी तो नहीं

मुस्कुरा के इक हसी ने बात कर ली है अगर
हमसफ़र भी वो बनेगी ये जरूरी तो नहीं

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 28, 2014 at 12:32pm

उम्र जलवों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं 
हर शबे ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं .
आपने इस मकबूल ग़ज़ल की याद दिला दी ..बधाई 

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