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ग़ज़ल - हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

१२१२      ११२२      १२१२     ११२  

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे

ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2014 at 4:46am

वाह वाह वाह.. !

वाकई इस ग़ज़ल पर देर से आना खल रहा है.  संजूजी, आपकी यह ग़ज़ल आगे आपकी ग़ज़लों के लिए मानक होगी.

दिल से बधाई लीजिये.

Comment by annapurna bajpai on June 4, 2014 at 8:01am

shandarशानदार गजल के लिए बधाई । 

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2014 at 4:38am

शानदार ग़ज़ल है
बधाई स्वीकारें

इस ग़ज़ल को अगर मैं लिखता तो लगी रदीफ़ की जगह लगे रदीफ़ रखता,

देखिए तो ज़रा से बदलाव से लुत्फ़ दोबाला हो जा रहा है

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगे

गुलों की बात छिड़े और उनको खार लगे

Comment by LOON KARAN CHHAJER on June 3, 2014 at 4:37pm


बहुत शानदार शब्द संयोजन बधाई

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2014 at 1:23pm

बहुत खूब ..क्या कहने ..वाह 

Comment by devraj on June 3, 2014 at 12:37pm

बहुत अच्छा मजा आ गया 

Comment by vijay nikore on June 2, 2014 at 4:31am

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई, आदरणीया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 1, 2014 at 10:51pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी संजू जी बहुत- बहुत बधाई. 

Comment by Neeraj Neer on June 1, 2014 at 11:51am

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी ... क्या कहने .. बहुत खूब..

Comment by ram shiromani pathak on May 31, 2014 at 3:01pm

वाह वाह ज़ोरदार कहन बहुत बहुत बधाई आपको। .......

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