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छीन सकता है भला/गजल/ कल्पना रामानी

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छीन सकता है भला कोई किसी का क्या नसीब?

आज तक वैसा हुआ जैसा कि जिसका था नसीब।

 

माँ तो होती है सभी की, जो जगत के जीव हैं,

मातृ सुख किसको मिलेगा, ये मगर लिखता नसीब।

 

कर दे राजा को भिखारी और राजा रंक को,

अर्श से भी फर्श पर, लाकर बिठा देता नसीब।

 

बिन बहाए स्वेद पा लेता है कोई चंद्रमा,

तो कभी मेहनत को भी होता नहीं दाना नसीब।

 

दोष हो जाते बरी, निर्दोष बन जाते सज़ा,

छटपटाते मीन बन, जिनका हुआ काला नसीब।

 

दीप जल सबके लिए, पाता है केवल कालिमा,

पर जलाते जो उसे, पाते उजालों का नसीब।

 

‘कल्पना’ फिर द्वेष कैसा, दूसरों के भाग्य से,

क्यों न शुभ कर्मों से लिक्खें, हम स्वयं अपना नसीब।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on May 15, 2014 at 5:21pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया कल्पना जी  ।बहुत बहुत बधाई आपको। सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 15, 2014 at 5:07pm

नसीब पर बहुत खूबसूरत अशआर कहें हैं आदरणीया कल्पना जी 

हार्दिक बधाई 

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 15, 2014 at 12:32pm

आदरणीय कल्पना दीदी
सुंदर ग़ज़ल हुई है..मुबारकबाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 15, 2014 at 10:50am

आदरणीय कल्पना बहन , किस्मत पर लाजवाब ग़ज़ल के लिए कोटि कोटि बधाई .

Comment by coontee mukerji on May 15, 2014 at 12:09am

छीन सकता है भला कोई किसी का क्या नसीब?

आज तक वैसा हुआ जैसा कि जिसका था नसीब।.....सच कहा कल्पना जी सबका अपना अपना नसीब.....हार्दिक बधाई.

 

Comment by भुवन निस्तेज on May 14, 2014 at 9:18pm

‘कल्पना’ फिर द्वेष कैसा, दूसरों के भाग्य से,

क्यों न शुभ कर्मों से लिक्खें, हम स्वयं अपना नसीब।

क्या बात है आदरणीया..बधाई ...

Comment by Shyam Narain Verma on May 14, 2014 at 5:47pm
सुंदर भावों की सुंदर गजल   … हार्दिक बधाई ..................

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