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तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो (ग़ज़ल 'राज')

2122  2122   2122 

तुम ग़ज़ल मेरी मुहब्बत में पगी हो

फूल, कलियाँ,वल्लरी सी ताज़गी हो

 

तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है

तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो

 

इन तेरी साँसों से महके प्रेम उपवन

रूप यौवन में बसी इक सादगी हो

 

पास आकर भी नहीं तुम पास मेरे

दूरियों से क्यूँ न फिर नाराज़गी हो

 

बिन तेरे ये दिल धड़कना छोड़ देता   

आज कहता हूँ मेरी तुम जिंदगी हो

 

प्यार पाकर दिल नहीं भरता ये मेरा

झील होकर अनबुझी इक तिश्नगी हो

 

दिल बिछा दूँ मैं जहाँ तू पाँव रख दे

इससे बढ़कर क्या मेरी दीवानगी हो

 

 (मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by rajesh kumari on May 18, 2014 at 12:19pm

मुकेश वर्मा  जी  आपको ग़ज़ल पसंद आई ,तहे दिल से आभार आपका |


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Comment by rajesh kumari on May 18, 2014 at 12:18pm

आ0 लक्ष्मण धामी भाइ जी  आपको ग़ज़ल पसंद आई ,तहे दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2014 at 12:17pm

भुवन निस्तेज जी आपको ग़ज़ल पसंद आई ,तहे दिल से आभार आपका |

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on May 17, 2014 at 11:32am

तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है

तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो ||  वाह !!

पास आकर भी नहीं तुम पास मेरे

दूरियों से क्यूँ न फिर नाराज़गी हो ||  वाह, बहुत खूब !!

वाह, सुन्दर ग़ज़ल आदरणीया राजेश जी  !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 16, 2014 at 12:08pm

अहा!!!! अहा!!!! आनंद आ गया आदरणीया एक एक अशआर इतनी सुन्दरता से कहे हैं कि वाह मजा आ गया दिल से भर भर कर एक एक शेअर पर ढेर सारी बधाइयाँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 15, 2014 at 6:50pm

आदरणीया राजेश जी , खूबसूरत गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

दिल बिछा दूँ मैं जहाँ तू पाँव रख दे

इससे बढ़कर क्या मेरी दीवानगी हो --   वाह !!

Comment by ram shiromani pathak on May 15, 2014 at 5:28pm

अहा। . अहा बहुत ही  सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया राजेश कुमारी  जी ।बहुत बहुत बधाई आपको। सादर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 15, 2014 at 4:32pm

तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है

तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो

 

प्यार पाकर दिल नहीं भरता ये मेरा

झील होकर अनबुझी इक तिश्नगी हो

 बहुत अच्छी गज़लें कही हैं बधाई स्वीकारें

 

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 15, 2014 at 1:01pm

तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है

तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो

बिन तेरे ये दिल धड़कना छोड़ देता  

आज कहता हूँ मेरी तुम जिंदगी हो.................बहुत बहुत उम्दा..क़ाबिले तारीफ़

दिल बिछा दूँ मैं जहाँ तू पाँव रख दे

इससे बढ़कर क्या मेरी दीवानगी हो

आदरणीया राजेश जी
बहुत संजीदगी से लिखा है आपने.. बहुत अच्छा लगा ये ग़ज़ल पढ़कर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 15, 2014 at 10:56am

तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है

तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो... बहुत खूब आदरणीय राजेश बहन , पूरी ग़ज़ल के लिए डैड कबूलें .

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