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मैं कभी तुझसे बिछड़ने का न मंजर देखूँ

2122   2122  2122  22

मैं कभी तुझसे बिछुड़ने का न मंजर देखूँ

मछलियों से ना कभी ख़ाली समंदर देखूँ

 

कब जमीं आकाश दोनों इस जहाँ में मिलते

मैं ये  संगम तो सदा दिल के ही अन्दर देखूँ

 

हर सितारा  तेरी किस्मत का बुलंदी पर हो

 मैं  न कोई हार से टूटा सिकंदर देखूँ

 

झेल लूँ मैं वार  खुद तेरी परेशानी के  

जीस्त में गड़ता हुआ ग़म का न खंजर देखूँ

 

जिंदगी में काश कोई दिन न आये ऐसा

मैं मुहब्बत की जमीं की कोख  बंजर देखूँ

 

इक सदाकत ,रूह की पाकीज़गी हो जिसमे

मैं तेरे दिल में वही चाहत निरंतर देखूँ 

------------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 16, 2014 at 9:00pm

आ० कल्पना दी ,आपको ग़ज़ल प्रभावित की मेरा लेखन सार्थक हुआ आपका तहे दिल से आभार |

Comment by कल्पना रामानी on June 16, 2014 at 8:39pm

बहुत ही खूबसूरत, हर शेर लाजवाब! प्रिय राजेश जी सुंदर गज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 16, 2014 at 9:24am

आ० मंजरी जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ बहुत- बहुत शुक्रिया |

Comment by mrs manjari pandey on June 15, 2014 at 9:41pm
हर सितारा तेरी किस्मत का बुलंदी पर हो
मैं न कोई हार से टूटा सिकंदर देखूँ



आदरणीया राजेश कुमारी जी लिए,नमस्कार . बहुत बहुत बधाइयां सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 10, 2014 at 11:20am

आ० सौरभ जी, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना से अभिभूत हूँ ,आपने जिस गलती की और इशारा किया उसके लिए हार्दिक धन्यवाद वास्तव में उसे मैं अपनी गलती नहीं सीनाजोरी कहूँगी --हाहाहा  ये ना हटने को ना ना कर रहा था किन्तु अब धक्का ही देना पड़ेगा तभी जाएगा :))) खैर आपके मार्गदर्शन में सुधार न हो एसा हो ही नहीं सकता बहुत- बहुत धन्यवाद आपका| 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 11:01pm

पूरी ग़ज़ल निश्शंक समर्पण की बेपनाह दास्तान है. ... वाह !

मतले से ’ना’ हटाने की कोशिश कीजिये.. ग़ज़ल में ना की जगह को लेने का रिवाज़ है.

बाकी सुबहानअल्लाह.. .  !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 9, 2014 at 8:24pm

विशाल चर्चित जी आपका तहे दिल से शुक्रिया .

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on June 8, 2014 at 10:55pm

बेहद उम्दा गहल !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2014 at 11:50am

बहुत- बहुत शुक्रिया आ० विजय निकोरे जी , ये ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना साथक हुआ. 

Comment by vijay nikore on June 8, 2014 at 11:35am

 मार्मिक भावों से सजी यह गज़ल अच्छी बनी है ...   हार्दिक बधाई, आदरणीया।

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