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 "  सच!  बहुत ही अच्छे इंसान थे  बल्लू भैया !!    क्षेत्रीय बैंक के अध्यक्ष पद पर  होते हुए उन्होंने सभी की बहुत मदद की , जो कोई भी पहचान वाला आकर अपनी समस्या बतलाता , उसे  कैसे न कैसे बैंक से आर्थिक मदद  दिलवा ही देते थे.  आज कई लोग तो उन्हीं की वजह से आबाद हुए बैठे है"

 

" हाँ भाई..!  उनकी माँ के  मर जाने के बाद आज उनका  अपना कोई भी तो नहीं.  देखा न !  पिछले वर्ष जब उनकी माँ की मृत्यु हुई थी तो बल्लू भैया के साथ-साथ सैकड़ों लोग सिर मुंडवाने को आगे आ गये और कहने लगे कि यह हम सबकी भी माँ थी,  लेकिन आज बल्लू भैया की मृत्यु पर ......."

 

   जितेन्द्र 'गीत'

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 14, 2014 at 11:30am

रचना पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 9, 2014 at 9:54pm

जितेंद्र भाई अब स्वार्थ का बोलबाला है जब तक स्वार्थ सिद्ध होता है हम सब उन्हें पहचानते हैं बस ..एक बड़ी बात सुन्दर लघु कथा
भमर ५

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 23, 2014 at 10:10am

आदरणीय सौरभ जी, सर्वप्रथम लघुकथा पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ.

आपका मार्गदर्शन पाकर मैं और अधिक प्रयास करूँगा, अपना स्नेह बनाये रखियेगा.

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 2:59am

लघुकथा के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाईजी.

लेकिन जाने क्यों मुझे बहुत कुछ उलझी कथा लगी.  माना, बल्लू भइया से लोगों का मात्र स्वार्थ का सम्बन्ध था, लेकिन यह बहुत खुल  कर नहीं आ पाया कि आखिर हुआ क्या कि वे इतने बेगाने हो गये.

फिर भी आपकी रचना सोचने को बाध्य तो जरूर करती है.

शुभेच्छाएँ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 15, 2014 at 11:13pm

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय गिरिराज जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 14, 2014 at 10:15am

आदरनीय जितेन्द्र भाई , वर्तमान मे लोगों की मानसिकता को समझाने मे आपकी लघुकथा सफ रही !! आपको दिली बधाइयाँ ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2014 at 7:36am

रचना पर आपकी उपस्थिति व् सराहना हेतु आपका हृदय से आभार आदरणीय अरुण जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2014 at 7:34am

आपकी स्नेह से भरी प्रतिक्रिया से बहुत ख़ुशी मिली आदरणीय चंद्रशेखर जी, आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 12, 2014 at 1:57pm

बहुत ही सुन्दर लघुकथा जीतेन्द्र भाई जी बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 11, 2014 at 9:34am

आपका ह्रदय से आभार आदरणीय राम शिरोमणि जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

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