For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल -- ' व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है '( गिरिराज भंडारी )

2122     2122     2122  

लंग सा जो भंग पैरों पर खड़ा है

हाँ, सहारा दो तो वो भी दौड़ता है

 

व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है  

कौन कैसा क्यों है, ये किसको पता है

 

दानवों सा इस जगह जो लग रहा है

सच कहूँ ! कुछ के लिये वो देवता है

 

सत्य सा निश्चल नही अब कोई आदम

मौका आने पर स्वयम को मोड़ता है

 

आप अपनी राह में चलते ही रहिये

बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है

 

उनकी क़समों का भरोसा क्या करुं मै

राज अपने कौन किसपे खोलता है

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 775

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 24, 2014 at 3:55pm

उनकी क़समों का भरोसा क्या करुं मै

राज अपने कौन किसपे खोलता है.............वाह ! वाह!

आदरणीय गिरिराज जी सादर, बढ़िया गजल कही है सभी अशआर अच्छे हैं. बहुत-बहुत बधाई!

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 24, 2014 at 3:13pm

आदरणीय गिरिराज जी

बहुत सुन्दर ग़ज़ल

आप अपनी राह में चलते ही रहिये

बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है

Comment by savitamishra on April 24, 2014 at 1:16pm

बहुत ही सुन्दर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 24, 2014 at 11:45am

सत्य सा निश्चल नही अब कोई आदम

मौका आने पर स्वयम को मोड़ता है----शानदार अशआर हुआ ...सटीक भाव 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई आ० गिरिराज जी तहे दिल से दाद कबूलिये. 

 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 24, 2014 at 11:36am

अच्छे अश’आर हुए हैं गिरिराज जी। दाद कुबूल कीजिए। ये शे’र विशेष

आप अपनी राह में चलते ही रहिये

बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 24, 2014 at 10:03am

लंग सा जो भंग पैरों पर खड़ा है

हाँ, सहारा दो तो वो भी दौड़ता है............... सच्चे  सहारे  को बयां करता हुआ मतला

 

व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है  

कौन कैसा क्यों है, ये किसको पता है...............आज का सत्य, जब हर इंसान अवसरवादी है यहाँ

 

दानवों सा इस जगह जो लग रहा है

सच कहूँ ! कुछ के लिये वो देवता है...............यह शायद समझने वाला ही समझ सकता है

 

सत्य सा निश्चल नही अब कोई आदम

मौका आने पर स्वयम को मोड़ता है..............बहुत गहरा दृष्टिकोण

 

आप अपनी राह में चलते ही रहिये

बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है....................सफल जीवन का मंत्र, लोगो की सुनो तो स्वयं परेशानी मोल लेलो

आपने अपने जीवन के अनुभव को बहुत सुन्दरता से गजल के शेरों में बयां किया है आपकी लेखनी को नमन आदरणीय गिरिराज जी, तहे दिल से बधाइयाँ स्वीकार कीजियेगा

सादर!

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service