For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: "क्यूँ लगता है"

बह्र = 121 2122 2122 222

हर एक आदमी इंसान सा क्यूँ लगता है
खुदा तेरा मुझे भगवान् सा क्यूँ लगता है

हज़ारो लोग दौड़े आते हैं मंदिर मस्जिद
मुझे खुदा ही परेशान सा क्यूँ लगता है

 कि सारी जिंदगी नाजों से था पाला जिसने
वो बूढ़ा बाप भी सामान सा क्यूँ लगता है 

सियासी कूचों से होकर के गुजरने वाला 
हर एक शख्स बे ईमान सा क्यूँ लगता है

इबादतों का कोई वक्त जो बांटूं भी तो
हर एक माह ही रमजान सा क्यूँ लगता है

अनुराग सिंह "ऋषी"

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 884

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2014 at 5:41pm

आ.अनुराग भाई ,खूब सूरत गज़ल कही है , आपको बधाइयाँ !!

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 23, 2014 at 4:21pm

 कि सारी जिंदगी नाजों से था पाला जिसने
वो बूढ़ा बाप भी सामान सा क्यूँ लगता है 

सियासी कूचों से होकर के गुजरने वाला 
हर एक शख्स बे ईमान सा क्यूँ लगता है

गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई स्वीकारें.।

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 23, 2014 at 12:15pm

आदरणीय मुकेश जी आपकी ज़र्रानवाजी हेतु बहुत बहुत आभार आपका | और वाकई ये शेर लिखते समय हमारे दिल में भी यही ख़याल आया था की मंदिर मस्जिद का वज्न बराबर है | अंतर है तो बस हमारे विचारों में |
सादर

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 23, 2014 at 12:13pm

आदरणीय अरुन सर आपके प्रेरणादायी टिप्पड़ी और प्रेम हेतु बहुत बहुत आभार आपका | आशा है आगे भी ऐसे ही स्नेह प्राप्त होता रहेगा |
सादर

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 23, 2014 at 11:35am

आदरणीय अनुराग जी
बहुत अच्छा लिखा है आपने. बहुत मुबारक हो आपको
ख़ास तौर से मतला

हर एक आदमी इंसान सा क्यूँ लगता है
खुदा तेरा मुझे भगवान् सा क्यूँ लगता है 

आपका दूसरा शेर, मंदिर मस्जिद.. बहुत कम लोग जानते है ..दो धर्मों के पर्याय ये दो शब्द, दोनो का इस विधा मे बराबर वज़न.. है न हैरत की बात..

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 23, 2014 at 11:33am

बहुत सुन्दर प्रयास भाई जी सभी अशआर पसंद आये प्रयासरत रहें इस सुन्दर ग़ज़ल पर ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 23, 2014 at 8:01am

आदरणीय जितेन्द्र गीत सर आपकी इस ज़र्रानवाजी के लिए बहुत बहुत आभार आपका
सादर

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 23, 2014 at 8:00am

बहुत बहुत आभार आपके इस प्रेरणादायी टिप्पड़ी एवं उम्दा सुझाव हेतु कल्पना मैम
सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 23, 2014 at 7:32am

हज़ारो लोग दौड़े आते हैं मंदिर मस्जिद
मुझे खुदा ही परेशान सा क्यूँ लगता है.............बहुत खूब.

दिली बधाई स्वीकार करें आदरणीय अनुराग जी

Comment by कल्पना रामानी on April 21, 2014 at 11:02pm

बहुत सुंदर गज़ल है अनुराग, बहुत बहुत बधाई आपको

हर एक माह ही रमजान सा क्यूँ लगता है...इस पंक्ति में माह को मास भी लिखा जा सकता है, इससे मेरे विचार से कहन में और सुंदरता बढ़ जाएगी और दोष भी दूर हो जाएगा।  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।  इसकी मौन झंकार -इस खंड में…"
3 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"दोहा पंचक. . . .  जीवन  एक संघर्ष जब तक तन में श्वास है, करे जिंदगी जंग ।कदम - कदम…"
4 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
4 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"उत्तम प्रस्तुति आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"दोहा अष्टक***हर पथ जब आसान हो, क्या जीवन संघर्ष।लड़-भिड़कर ही कष्ट से, मिलता है उत्कर्ष।।*सहनशील बन…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सादर अभिवादन।"
18 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
सतविन्द्र कुमार राणा posted a blog post

जमा है धुंध का बादल

  चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आयाजरा सोचो कभी झगड़े भला…See More
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Thursday
आशीष यादव posted a blog post

जाने तुमको क्या क्या कहता

तेरी बात अगर छिड़ जातीजाने तुमको क्या क्या कहतासूरज चंदा तारे उपवनझील समंदर दरिया कहताकहता तेरे…See More
Thursday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service