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क्यों गाती हो कोयल : नीरज नीर

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल

है पिया मिलन की आस
या बीत चुका मधुमास
वियोग की है वेदना
या पारगमन है पास
मत जाओ न रह जाओ यह छोड़ अम्बर भूतल

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल


तू गाती तो आता
यह वसंत मदमाता
तू आती तो आता
मलयानिल महकाता
तू जाती तो देता कर जेठ मुझे बेकल

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल


कलि कुसुम का यह देश
रह बदल कोई वेष
सुबह सबेरे आना
हौले से तुम गाना
आकर मेरी खिड़की पर कोई गीत नवल…

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल

..............

नीरज कुमार नीर

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 480

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 30, 2014 at 6:04pm

गीत विधा पर बहुत सुन्दर प्रयास आ० नीरज कुमार जी 

शुभकामनाएं 

Comment by Neeraj Neer on April 23, 2014 at 9:02am

आ. जितेन्द्र गीत जी आपका हार्दिक धन्यवाद. 

Comment by Neeraj Neer on April 23, 2014 at 9:00am

आ. लक्षमण धामी जी हार्दिक धन्यवाद आपका..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 22, 2014 at 11:31am

सुंदर भावों को संजोये, एक सुंदर रचना. बधाई आदरणीय नीरज जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 22, 2014 at 11:06am

आदरणीय नीरज भाई एक अच्छी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें .

Comment by Neeraj Neer on April 22, 2014 at 8:30am

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी आपका हार्दिक आभार.. 

Comment by Neeraj Neer on April 22, 2014 at 8:29am

हार्दिक आभार आदरणीय अनुराग जी ..

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 21, 2014 at 10:09pm

आदरणीय नीरज भाई 

तू गाती तो आता 
यह वसंत मदमाता 
तू आती तो आता 
मलयानिल महकाता 

तू जाती तो देता 
कर जेठ मुझे बेकल

क्यों गाती हो कोयल 
होकर इतना विह्वल

कोयल की मधुर आवाज के साथ सुंदर दृश्य प्रस्तुत किया है अपनी भावपूर्ण रचना में, हार्दिक बधाई  

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 21, 2014 at 1:13pm

एक सुन्दर रचना सुन्दर भावों को संजोये
सादर

कृपया ध्यान दे...

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