For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता -

शरीर में चुभे हुए काँटे

जो शरीर को छलनी करते हैं;

वह टीस 

जो दिल की धड़कन

साँसों को निस्तेज करती है

 

यह तुम्हें आनंद नहीं देगी

प्रेम का कोरा आलाप नहीं यह

वासना में लिपटे शब्दों का राग नहीं

छद्म चिंताओं का दस्तावेज़ नहीं

इसे सुनकर झूमोगे नहीं

 

यह तुम्हें गुदगुदाएगी नहीं

सीधे चोट करेगी दिमाग पर

तड़प उठोगे

यही उद्देश्य है कविता का

 

रात के स्याह-ताल पर 

नृत्य करने वाले नर-पिशाचों के लिए

नहीं होती कविता

 

कविता पैदा करती है

जिंदा लोगों में झुरझुरी

एक सिहरन!

           - बृजेश नीरज 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1107

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 6, 2014 at 6:20pm

आदरणीय बृजेश जी
जितनी तारीफ़ की जाए कम है..

यह तुम्हें आनंद नहीं देगी

प्रेम का कोरा आलाप नहीं यह

वासना में लिपटे शब्दों का राग नहीं

छद्म चिंताओं का दस्तावेज़ नहीं

इसे सुनकर झूमोगे नहीं

यह तुम्हें गुदगुदाएगी नहीं

सीधे चोट करेगी दिमाग पर

तड़प उठोगे

यही उद्देश्य है कविता का

कविता पैदा करती है

जिंदा लोगों में झुरझुरी

एक सिहरन!

सीधे दिल पे चोट करती है.. कविता का तो मतलब ही यही है..जो दिल से लिखी गयी हो..और पढ़ने के लिए भी तो वैसा ही दिल चाहिए.
सशक्त शब्दों का खूबसूरत तानाबाना.. तहे दिल से मुबारकबाद

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2014 at 10:45am

धर्मेन्द्र भाई आपका बहुत-बहुत आभार!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2014 at 10:38am

अच्छी कविता है बृजेश जी,

निःसंदेह

कविता पैदा करती है

जिंदा लोगों में झुरझुरी

एक सिहरन!

बधाई स्वीकार करें।

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2014 at 10:35am

अरुण भाई आपका बहुत-बहुत आभार! आपके अनुमोदन ने बल दिया!

Comment by Arun Sri on May 1, 2014 at 10:28am

बहुत सुन्दर कविता भईया जी ! समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने वाला कवि कविता का चरित्र चित्रण करेगा तो ऐसा ही करेगा ! सादर !

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2014 at 9:36am

आदरणीय सौरभ जी, मेरी 'कोशिश' को आपका अनुमोदन मेरे लिए तोषदाई है! आपका हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2014 at 2:32am

इस कविता को पढ़ते हुए रात बारह बजे डीजे के अश्लील शोर पर झूमते, मताये ऐसे लोगों का स्मरण हो आता है, जिनके सामने नागरिक आचार-व्यहार और संहिता की बात करता हुआ कोई सज्जन खड़ा हो. कविता का हेतु स्पष्ट करती एक अच्छी कोशिश के लिए बधाई.

 

Comment by बृजेश नीरज on April 27, 2014 at 9:38pm

आदरणीया महिमा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on April 27, 2014 at 9:38pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by MAHIMA SHREE on April 24, 2014 at 9:15pm

आदरणीय ब्रिजेश जी ..बहुत -२ हार्दिक बधाई ...एक साँस में पढ़ गयी  कविता का सच तो यही होना चाहिए जो  समाज में . हर व्यक्ति में उन्नत विचारों का , परिवर्तन का बीज बो दे .. नयी दिशा दे .. सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
18 hours ago
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"जी सर आपकी बेहतरीन इस्लाह के लिए शुक्रिया 🙏 🌺  सुधार की कोशिश करती हूँ "
yesterday
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को…"
Wednesday
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में…"
Wednesday
रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
Monday
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Nov 2
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Nov 1
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
Oct 31
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
Oct 31

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service