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दिल तो दीवाना हुआ

दिल तो दीवाना हुआ

 

आपका इस घर मे कुछ इस तरह आना हुआ

ऐसा लगता है यह घर है आपका जाना हुआ ।

मुझको तो मालूम न था आप यूं छा जाएँगे

रेशमी ज़ुल्फों मे मुझको , यूं छुपा ले जाएँगे । 

आपकी ज़ुल्फों मे खोये  सुबह का आना हुआ

ऐसा लगता है यह घर है आपका जाना हुआ ।।

आप सावन की घटा हैं, या हैं फागुन की बहार ?

अब गले लग जाइए , मत देखिये यूं बार बार ।

नयन है मदहोश अब  तो प्यार पैमाना  हुआ

ऐसा लगता है यह घर है  आपका जाना हुआ ।।

मुखड़ा पूनम चाँद जैसा , उफ़ ये मतवाली सी चाल

कैसे मैं खुद को सम्हालूँ दिल तो दीवाना हुआ ।

ऐ आहटों छेड़ो न तुम , ऐ वक्त थम भी जाओ तुम

क्यूँ  मची है खलबली  जब  आपको पाना हुआ ।।

 

--------- मौलिक और अप्रकाशित ---------

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Comment by sharadindu mukerji on April 8, 2014 at 5:47pm
क्या बात है ब्रह्मचारी जी !! नए रंग और नए अंदाज़ में आपको पाना सुखद अनुभूति है...शुभकामनाएँ.
Comment by coontee mukerji on April 6, 2014 at 1:05pm

रूमानियत से भरपूर अगर ग़ज़ल में कही जाय तो बेहद सुंदर होगा....भाई साहब प्रयास करने में क्या हर्ज़ है.ओबीओ मंच पर गज़लों के गुरू भरे हुए है.मार्गदर्शन मिल सकते है....सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 5, 2014 at 9:37pm

आदरणीय ब्रह्मचारी जी 

आप ग़ज़ल विधा पर थोड़ा सा प्रयास करें और तरही मुशायरों को सुरुचिपूर्वक देखते चलें तो आप सुन्दर रवायती ग़ज़ल कहना सीख सकते हैं..

इस शृंगारिक प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 5, 2014 at 12:20pm

लय के साथ सुंदर शब्द , अच्छी रचना , हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 4, 2014 at 11:31pm

बहुत खुबसूरत अंदाज, बधाई आपको आदरणीय

Comment by Saarthi Baidyanath on April 4, 2014 at 1:15pm

क्या दिलकश अंदाज़ है मान्यवर 

मुखड़ा पूनम चाँद जैसा , उफ़ ये मतवाली सी चाल

कैसे मैं खुद को सम्हालूँ दिल तो दीवाना हुआ ।........बेहतरीन ..बहुत खूब 

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