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ग़ज़ल : जाति की बात करने से क्या फ़ायदा

बह्र  : २१२ २१२ २१२ २१२

 

ये ख़ुराफ़ात करने से क्या फ़ायदा

जाति की बात करने से क्या फ़ायदा

 

हाय से बाय तक चंद पल ही लगें

यूँ मुलाकात करने से क्या फ़ायदा

 

हार कर जीत ले जो सभी का हृदय

उसकी शहमात करने से क्या फ़ायदा

 

आँसुओं का लिखा कौन समझा यहाँ?

आँख दावात करने से क्या फ़ायदा

 

ये जमीं सह सके जो बस उतना बरस

और बरसात करने से क्या फ़ायदा

 

कुछ नया कह सको गर तो ‘सज्जन’ सुने

फिर वही बात करने से क्या फ़ायदा

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 640

Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 2:50pm

बहुत बहुत शुक्रिया Shyam Narain Verma जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 2:49pm

बहुत बहुत धन्यवाद शिज्जु शकूर जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 2:47pm

बहुत बहुत शुक्रिया  sanju shabdita जी 

Comment by बृजेश नीरज on March 14, 2014 at 8:31pm

वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Omprakash Kshatriya on March 14, 2014 at 7:21am

शानदार भाव व्यक्त किए है आप ने . बधाई 

Comment by yogesh shivhare on March 13, 2014 at 7:49pm

बहुत सुन्दर वाह। ........ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2014 at 7:18pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Shyam Narain Verma on March 13, 2014 at 1:29pm
बहुत उम्दा ... बहुत बहुत बधाई....

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2014 at 10:44am

आदरणीय धर्मेंन्द्र जी लाजवाब ग़ज़ल हुई है। आपके खयालात मानो अल्फाज़ की शक्ल लेकर ग़ज़लगोई को नये मायने दे रहे हैं। बहुत बहुत बधाई आपको।

Comment by sanju shabdita on March 13, 2014 at 10:41am

कुछ नया कह सको गर तो ‘सज्जन’ सुने

फिर वही बात करने से क्या फ़ायदा ............... बहुत खूब सज्जन जी, सच है नया कहना बेहद जरूरी ..सुन्दर ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई //

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