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ग़ज़ल : सदा सच बोलता है जो कभी अफ़सर नहीं होता

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

 

कहीं भी आसमाँ पे मील का पत्थर नहीं होता

भटक जाता परिंदा, गर ख़ुदा, रहबर नहीं होता

 

कहें कुछ भी किताबें, देश का हाकिम ही मालिक है

दमन की शक्ति जिसके पास हो, नौकर नहीं होता

 

बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे

यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता

 

मिलाकर झूठ में सच बोलना, देना जब इंटरव्यू

सदा सच बोलता है जो कभी अफ़सर नहीं होता

 

ये पीली पत्तियाँ, पत्ते हरे आने नहीं देतीं

अगर इनको गिराने के लिये पतझर नहीं होता

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2014 at 10:58am

बहुत बहुत धन्यवाद BHUWAN NISTEJ जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2014 at 10:50am

बहुत बहुत शुक्रिया Baidyanath Saarthi जी

Comment by भुवन निस्तेज on April 4, 2014 at 1:17pm

उप्लब्धिमुलक रचना के लिए हार्दिक बधाई कबूल करें आदरणीय...

Comment by Saarthi Baidyanath on April 4, 2014 at 1:12pm

बहुत अलग ग़ज़ल.... आम शब्दों को अच्छी तरह से प्रयोग किया है आपने !..

बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे

यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता.....बहुत खूब आदरणीय ...लाजवाब 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 12:20pm

बहुत बहुत शुक्रिया by Dr.Prachi जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:59am

बहुत बहुत शुक्रिया Saurabh जी। स्नेह बना रहे

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:58am

बहुत बहुत शुक्रिया बृजेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:49am

बहुत बहुत शुक्रिया laxman dhami साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:45am

बहुत बहुत धन्यवाद Mukesh Verma "Chiragh" जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:40am

बहुत बहुत शुक्रिया विजय मिश्र जी

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