For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सत्य पिरो लूँ (नवगीत)......................डॉ० प्राची

अहसासों को

प्रज्ञ तुला पर कब तक तोलूँ

चुप रह जाऊँ

या अन्तः स्वर मुखरित बोलूँ

 

जटिल बहुत है

सत्य निरखना- 

नयन झरोखा रूढ़ि मढ़ा है,

यद्यपि भावों की भाषा में

स्वर आवृति को खूब पढ़ा है

 

प्रति-ध्वनियों के

गुंजन पर इतराती डोलूँ

 

प्राण पगा स्वर

स्वप्न धुरी पर

नित्य जहाँ अनुभाव प्रखर है

क्षणभंगुरता - सत्य टीसता

सम्मोहन की ठाँव, मगर है

 

भाव भूमि पर

आदि-अंत के तार टटोलूँ

 

श्वास-श्वास में

कण-कण जीवन

जी लेने की रख अभिलाषा,

अंतर्मन ही छद्म जिया यदि

जीवन की फिर क्या परिभाषा

 

निज संचय में

मणिक-मणिक सम सत्य पिरो लूँ

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 983

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madan Mohan saxena on July 3, 2014 at 4:53pm

सुंदर.हार्दिक बधाई

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 23, 2014 at 12:45pm

सुन्दर काव्य धारा प्रवाहित हुयी
श्वास-श्वास में
कण-कण जीवन
जी लेने की रख अभिलाषा,
अंतर्मन ही छद्म जिया यदि
जीवन की फिर क्या परिभाषा
उत्साह और जीवन संघर्ष की सीख देती अच्छी रचना
भ्रमर ५

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 22, 2014 at 9:29am

अध्यात्म के वस्तु के साथ, चिरकाल से चलते प्रज्ञा, मनस के द्वन्द के बीच सत्य की गवेषणा को नवगीत के शिल्प में ढालकर बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति दी है आ0 प्राची मैम आपने। आपका व्यक्तिगत अंतर्प्रेक्षण और उसका प्रस्तुतिकरण लाजवाब है। बधाई स्वीकारें।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 6:22pm

ऊहापोह और विभ्रम का होना ही यह प्रमाणित करता है के सचेत अवस्था और सजगता के लिए मनस प्रयासरत है.
इस अच्छे और सफल गीत के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई, आदरणीया, और हार्दिक शुभकामनाएँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 13, 2014 at 11:36am

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,

कई बार बतौर पाठक किसी रचना में हम वो ढूंढ लेते हैं जो हम मानना चाहते हैं..और फिर रचना भी वही संतुष्ट करती सी प्रतीत होती है.. इस नवगीत के साथ कुछ वक़्त बिताने और उत्साहवर्धन करने के लिए मैं आपकी ह्रदय से आभारी हूँ..

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 13, 2014 at 11:34am

आदरनी बृजेश जी 

आपको नवगीत सन्निहित कथ्य व भाव बतौर पाठक संतुष्ट कर सके..यह जान बहुत अच्छा लगा 

आपका हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 13, 2014 at 11:33am

आदरणीय अखिलेश जी 

नवगीत की अंतर्निहित आवाज़ तक पहुँचने के लिए सादर धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 12, 2014 at 2:17pm

श्वास-श्वास में

कण-कण जीवन

जी लेने की रख अभिलाषा,

अंतर्मन ही छद्म जिया यदि

जीवन की फिर क्या परिभाषा

 

निज संचय में

मणिक-मणिक सम सत्य पिरो लूँ----दुनिया से छुपा लेंगे किन्तु अपनी कमियों को अपने छद्म रूप को खुद से कैसे छुपा पायेंगे मन दर्पण कैसे चेहरा देखेंगे ...बहुत सच्चाई है इन पंक्तियों में, बहुत सुन्दर नव गीत रचा है ,बहुत -बहुत बधाई आपको प्रिय प्राची जी. 

Comment by बृजेश नीरज on March 10, 2014 at 8:15pm

हम वैसा जीवन नहीं जीते जैसा हमारा अंतर्मन चाहता है. मन/चेतना के भावों और वास्तविक जीवन की सच्चाई के द्वन्द को इस नवगीत के माध्यम से आपने बहुत ही सुन्दर शब्द दिए हैं.   

इस सुन्दर नवगीत के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीया प्राची जी!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 10, 2014 at 7:29pm

आदरणीया प्राचीजी

यह नवगीत मन से ज़्यादा आत्मा की आवाज है , अंतर्मन के भावों को सच्चाई से व्यक्त किया है, हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके संकल्प और आपकी सहमति का स्वागत है, आदरणीय रवि भाईजी.  ओबीओ अपने पुराने वरिष्ठ सदस्यों की…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपका साहित्यिक नजरिया, आदरणीय नीलेश जी, अत्यंत उदार है. आपके संकल्प का मैं अनुमोदन करता हूँ. मैं…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"जी, आदरणीय अशोक भाईजी अशोभनीय नहीं, ऐसे संवादों के लिए घिनौना शब्द सही होगा. "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सुशील सरना जी, इन दोहों के लिए हार्दिक बधाई.  आपने इश्क के दरिया में जोरदार छलांग लगायी…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"माननीय मंच एवं आदरणीय टीम प्रबंधन आदाब।  विगत तरही मुशायरा के दूसरे दिन निजी कारणों से यद्यपि…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"आप पहले दोहे के विषम चरण को दुरुस्त कर लें, आदरणीय सुशील सरना जी.   "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आप वस्तुतः एक बहुत ही साहसी कथाकार हैं, आ० उस्मानी जी. "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया विभा रानी जी, प्रस्तुति में पंक्चुएशन को और साधा जाना चाहिए था. इस कारण संप्रेषणीयता तनिक…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। हमारा सौभाग्य है कि आप गोष्ठी में उपस्थित हो कर हमें समय दे सके। रचना…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रस्तुति नम कर गयी. रक्तपिपासु या हैवान या राक्षस कोई अन्य प्रजाति के नहीं…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"घटनाक्रम तनिक खिंचा हुआ प्रतीत तो हो रहा है, लेकिन संवादों का प्रवाह रुचिकर है, आदरणीय शेख शहज़ाद…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service