For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हुए पैदा सलीबों पर (ग़ज़ल) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

1222 1222 1222 1222

मुहब्बत की  नहीं उससे , वफा भी फिर  निभाता क्या
खबर थी ये  उसे भी जब , मुझे  तोहमत लगाता क्या


सपन  में  रात  भर  था  जो , उसे  भी  ले गया सूरज

मिला साथी  मुझे भी  है , जमाने फिर  बताता   क्या


जिसे  डर  हो  सजाओं  का, उसे   यारों  सताता  डर
हुए  पैदा  सलीबों   पर ,  बता   डरता   डराता  क्या


न  हो  तू  अब  खफा  ऐसे , रहा  है   भाग  बंजारा

न था कोई  ठिकाना जब, पता तुझको लिखाता क्या


पला है  झूठ  की कोखों, चला  छल  का पकड़ दामन
जमीरों  की  सदा झूठी, हमें  तब  सच  सुनाता क्या


मुहब्बत   का   मजा  सुनते,  मनाने   रूठने   में   है
कभी रूठी नहीं कमसिन, ‘मुसाफिर’ तब मनाता क्या

मौलिक और अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 7, 2014 at 11:17am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है 

सभी अशआर ठहर जाने को मजबूर कर रहे हैं...बहुत उम्दा 

हर एक शेर पर हार्दिक बधाई आ० लक्ष्मण धामी जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2014 at 5:11am

आदरणीय सौरभ भाई आपने वजह फ़रमाया .दरअसल जल्दबाजी में मैं पूरी पंक्ति पर गौर  नहीं कर पाया था .मार्गदर्शन के लिए आभार . सुझाव देते रहिएगा . धन्यवाद .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 1:24pm

मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवादभाईजी.

उक्त शेर को यों दुरुस्त हुआ देख रहा हूँ -

जिसे डर हो सजाओं का उसे यारो सताता डर .... ...   यारो होगा यारों नहीं
हुआ पैदा सलीबों पर कहो डरता डराता क्या

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2014 at 8:35am

आदरणीय  सौरभ  भाई , ग़ज़ल कि प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .आपका सुझाव  उत्तम है , धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 12:58am

आपकी ग़ज़ल ने बहुत बहुत आश्वस्त किया है भाई लक्ष्मण मुसाफ़िर जी.

मैं दिल से दाद दे रहा हूँ.

’डरता-डराता’ क्या  करने से और मज़ा आये. देखियेगा.

फिर कहूँगा, एक सार्थक और आशान्वित करती हुई सी कोशिश हुई है.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2014 at 2:28am

आदरणीया मीना जी , ग़ज़ल कि प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by Meena Pathak on February 3, 2014 at 2:33pm

सुन्दर गज़ल ...बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 9:47pm

आदरणीय भाई गिरिराज जी , आपकी प्रतिक्रिया से लगा है कि मेरे लेखन में सुधार हुआ है .यह सब आप सहित ओ बी ओ परिवार के अनेक सदस्यों के मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन का ही परिणाम है . बस इसी तरह मार्ग दर्शन करते रहिये और कमियों से अवगत करते रहें यही कामना है . हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 9:40pm

आदरणीय मनोज भाई आपको ग़ज़ल पसंद आई .आपकी प्रसंसा पाकर मन प्रसन्न हुआ .आप जैसे भाइयो का स्नेह ही कुछ बेहतर लिखने का प्रयास करने को प्रेरित करता है . आसा है बाविशी में भी अपनी रे देकर और बेहतर करने कि प्रेरणा देंगे .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2014 at 8:09pm

आदरनीय लक्ष्मण भाई , बहुत लाजवाब ग़ज़ल कही है , सभी अशाअर बेहतरीन हैं , आपको बहुत बहुत बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
24 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
14 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
14 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service