ममता का चित बड़ा चंचल चपल तब
तन मे सचल मन बड़ा ही प्रचल है
रमता ये जोगी छोटा नाटा ये कपट कब
तन में उदित मन बड़ा ही स्वचल है
समता का भाव जागा मन में भी मेरे अब
तन में न हलचल मन निशचल है
तमता नहीं है भाव में रहे निचल रब
तल में अतल में वितल में अचल है
मौलिक एवं अप्रकाशित
आशीष (सागर सुमन)
Comment
गेयता और शब्द विन्यास पर कार्य करें आदरणीय.
मुझे आपकी यह कोशिश एक ऐसी कोशिश लगी जो सीखने के क्रम में विद्यार्थियों द्वारा अमूमन की जाती है. कथ्य के संप्रेषण में कुछ और ध्यान देने के आवश्यकता है.
शुभेच्छाएँ
बहुत सुन्दर घनाक्षरी .हार्दिक बधाई आपको
अति-सुन्दर , मुग्ध करती घनाक्षरी के लिए बधाइयाँ...............
savitamishra: hrday tal se aabhari hun
Shyam Narain Verma ji , hardik aabhaar
Meena Pathak JI aabhaar
बहुत सुन्दर घनाक्षरी .. सादर बधाई
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ........ |
सुंदर
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