गीत भी लिखे कलम भारती के गान के तो,
कागज भी नाच के ही आन करने लगा
वंदन हजार माँ को छंद ने किये है और
पंक्ति पंक्ति लिख के ही गान करने लगा
स्याही शूर वीरता के मंत्र लिखती गयी तो
अक्षर भी अक्षर का मान करने लगा
देशप्रेम वाला भाव मन में बसा लिया तो
शब्द शब्द राष्ट्र को सलाम करने लगा
मौलिक एवं अप्रकाशित
आशीष ( सागर सुमन)
Comment
इस सुन्दर प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें////सादर
अरुन अनन्त जी, आपने किस तथ्य को साझा किया कि घनाक्षरी में तुकान्तता अनिवार्य नहीं है. कृपया साझा करें तो हम सभी को लाभ होगा.
आदरणीय आशीष भाईजी, आपकी घनाक्षरी कथ्य की दृष्टि से भी तनिक और प्रयास मांगती है. इस प्रस्तुति पर चूँकि आपसे मेरा व्यक्तिगत संवाद बन चुका है अतः आपसे उचित की अपेक्षा है.
सादर
annapurna bajpai जी आप ने रचना पढ़कर उत्साह बढाया , आभार अनुपमा जी
अरुन शर्मा 'अनन्त': जी आप ने रचना पढ़कर उत्साह बढाया , आभार मान्यवर और आपका सुझाव अत्यंत प्रिय है , पुनः आभार ह्रदय से
Shyam Narain Verma जी आप ने रचना पढ़कर उत्साह बढाया , आभार मान्यवर और आपका सुझाव अत्यंत प्रिय है , पुनः आभार ह्रदय से
गिरिराज भंडारी: आप ने रचना पढ़कर उत्साह बढाया , आभार मान्यवर
आ0 आशीष जी सुंदर घनाक्षरी छंद हुआ है आपको बधाई ।
भाई आशीष जी बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है घनाक्षरी छंद पर. भाई जी इस छंद में भाषा का प्रवाह और गति सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है. तुकांतता आवश्यक नहीं किन्तु ऐसा करने से पढ़ने और सुनने वालों को अधिक मधुर लगता है. विधान के हिसाब से बिलकुल सही है. इस सुन्दर प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय ,
कवित्त में लय ही मुख्य है | सम प्रयोग बहुत कर्ण मधुर होते हैं |
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
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