For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1122 22/112

आँधी से उजड़ा शजर लगता है

वो बुलन्द अब भी मगर लगता है

 

सिर्फ किरदार नये हैं उसके

इक पुराना वो समर लगता है

 

बेकरानी में कहीं गुम शायद

इक बियाबान में घर लगता है

 

वो कहीं शिद्दते- तूफ़ाँ तो नही

रास्ता छोड़ अगर लगता है

 

पत्थरों को जो मुजस्सम करे वो

तेरे हाथों में हुनर लगता है

 

काँच का दिल है ज़बाँ पे पत्थर

बच के जाऊँ मुझे डर लगता है

 

आपके दम से जहीं है ये कलम

आपका दिल पे असर लगता है

समर = किस्सा या कहानी
बेकरानी = असीम विस्तार
जहीं(जहीन) = दक्ष

मुजस्सम = साकार

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 827

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2013 at 11:28pm

हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया भाई जितेन्द्र जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2013 at 11:27pm

आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ सर रचनाओं पर आपकी उपस्थिति सदैव उत्साहित करती है

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 27, 2013 at 11:25pm

काँच का दिल है ज़बाँ पे पत्थर

बच के जाऊँ मुझे डर लगता है.....वाह! क्या बात है

शानदार गजल आदरणीय शिज्जू जी, बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 10:48pm

पत्थरों को जो मुजस्सम करे वो

तेरे हाथों में हुनर लगता है

इस शेर के गिर्द पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी.

बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2013 at 7:12pm

तारीफ के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया भाई बैद्यनाथ जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2013 at 7:12pm

आदरणीय गोपाल नारायण सर हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया, माफी चाहता हूँ शब्दार्थ लिखना भूल गया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2013 at 7:11pm

आदरणीय गिरिराज सर हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2013 at 7:10pm

आपका आभार आदरणीया कुन्ती जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2013 at 7:07pm

आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय वीनस जी

Comment by Saarthi Baidyanath on December 27, 2013 at 3:24pm

पत्थरों को जो मुजस्सम करे वो

तेरे हाथों में हुनर लगता है...गज़ब का ख्याल 

 

आपके दम से जहीं है ये कलम

आपका दिल पे असर लगता है...माशाल्लाह ...वाह बहुत खूब शिज्जू साहब 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service