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नवगीत - नये साल की धूप // --सौरभ


आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

संवादों में--
यहाँ-वहाँ की, मौसम, नारे..
निभते हैं
टेबुल-मैनर में रिश्ते सारे
रौशनदानी
कहाँ कभी एसी-कमरों में ?
बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
 
अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
*********
-- सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by ajay sharma on December 21, 2013 at 10:49pm

kabhi kabhi  hi aise navgeet sunne aur padne ko milte hai ....dhanya hua hoo mai

par .....संवादों में--यहाँ-वहाँ की/  , मौसम, नारे..निभते हैं /   टेबुल-मैनर में रिश्ते सारे रौशनदानी /  कहाँ कभी एसी-कमरों में ?/  बिजली गुल है,खिड़की-पल्ले तनिक हटाना

/.. नये साल की धूप तनिक तुम लेते आना.. .

 kuch bhav samajh  nahi paya ......"""mausam nare nibh......"""     ........."table manner  me ....""""      

ka kya artha hai yahan .....badi  kripa hogi  apki ............... 

Comment by ajay sharma on December 21, 2013 at 10:35pm

mai  bhi yahi  kahoonga ......."इतने शब्द नहीं हैं मेरे पास इन पंक्तियों की तारीफ में बस वाह्ह्ह्हह्ह्ह .." is liye hindi me comment udhar le raha hoo 

Comment by shashi purwar on December 21, 2013 at 6:35pm

माननीय सौरभ जी आपका नवगीत बहुत सुन्दर भाव लिए हुए है हार्दिक बधाई आपको

एक सवाल मन में उठा है , सुन्दर। शिल्प। भाव। सभी है शानदार नवगीत

एक भ्रम दूर कीजिये ....... मात्रा गिनने पर हमें समझ नहीं आया कहाँ जोड़े और कहाँ नहीं , मात्रिक बंद  की  पंक्तिया हमें अलग अलग लगी , सामान्यतः पक्तियों के अनुसार हम गिन लेते है मार्गदर्शन प्रदान करें , माननीय।  

Comment by Sushil Sarna on December 21, 2013 at 3:15pm

आदरणीय सौरभ जी -- आपके द्वारा प्रस्तुत नवगीत हृदय को छू गया।
आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
कितना सुंदर और प्रभावशाली आरम्भ है .... आँखों के गमलों में … भावों को कितनी मासूमियत से आपने शब्दों में ढाला है … वाह बहुत खूब

 

ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

अंतर्मन के छुपे भावों को कागज़ पर उतारना आसान नहीं .... निशब्द हूँ सर

 

संवादों में--
यहाँ-वहाँ की, मौसम, नारे..
निभते हैं
टेबुल-मैनर में रिश्ते सारे
रौशनदानी
कहाँ कभी एसी-कमरों में ?
बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

वर्त्तमान जीवन शैली पर गहरा कटाक्ष - वाह अति अति सुंदर -सर क्षमा सहित इसी क्रम में -

 

तरस गयी है धूप
देखने को आँगन का रूप -
दीवारें ही दीवारें हैं
मेरा सिमट गया है रूप

 

अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

 

रचना का ये भाग भावुकता की ओस में भीगा है …

सम्पूर्ण रचना में शब्द चयन, अलंकारिक प्रभाव और भावुकता समेटे प्रवाह पाठक को अंत तक बांधे रखता है। इस दिलकश सृजन की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई -

सादर वंदे

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 21, 2013 at 1:40pm

अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .आदरणीय सौरभ सर ..नव बर्ष से पहले शानदार नव गीत ..इसके तकनीकी पक्ष के बिषय में कोई जानकारी नही है .भाव कठिन लगे ..इस गंभीर नव गीत के लिए हार्दिक बधाई ..आदरणीय सर नव गीत के बिषय में कोई लिंक हो तो कृपा कर दीजियेगा ..इसकी शिल्प समझने में सहायता होगी ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by नादिर ख़ान on December 21, 2013 at 11:32am

ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

आदरणीय सौरभ जी, आपकी रचना पढ़कर नए साल के आगमन की खुशी झलकने लगी है।

नई आशाएँ भी जन्म लेने लगी हैं ।

सुंदर गीत के लिए कोटिशः बधाई ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 21, 2013 at 10:09am

आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .---------इतने शब्द नहीं हैं मेरे पास इन पंक्तियों की तारीफ में बस वाह्ह्ह्हह्ह्ह ..

रहने के आधुनिक सुख साधनों के बीच उस मासूम पावन धूप के लिए तरसता जीवन ----वाह बहुत कुछ कहता ये बंद

नए साल की धूप के बिम्ब के माध्यम से गिले शिकवे दूर करना ---वाह

बार बार पढने को प्रेरित करता अति सुन्दर अतिसुन्दर नवगीत.

बहुत- बहुत बधाई आदरणीय सौरभ जी इस रचना के लिए और नव वर्ष की धूप के लिए भी.

 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 21, 2013 at 9:46am

इंतजार था नये साल का, अब न चलेगा बहाना।  

नये वर्ष के स्वागत में,सूर्योदय से पहले आना ....... (अब कैसा शरमाना) ॥

नये साल के स्वागत गीत की हार्दिक बधाई सौरभ भाई॥

 

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