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इक सिर्फ तुझको देखूँ डगर में - शिज्जु

22- 1212- 1122

हर रात ख़्वाब के मैं सफ़र में

इक सिर्फ तुझको देखूँ डगर में

 

कुछ आज मखमली सी लगी धूप

क्या बात है न जाने सहर में

 

अंगारों पे चला मैं सहम के

इक हौसला भी था मेरे डर में

 

यूँ हैरतों से देखे मुझे लोग

है मेरा नाम आज खबर मे

 

हर शै पे हर मुकाम पे तू थी

तन्हा हुआ न तेरे नगर में

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by vandana on December 13, 2013 at 6:50am

 

कुछ आज मखमली सी लगी धूप

क्या बात है न जाने सहर में

हर शै पे हर मुकाम पे तू थी

तन्हा हुआ न तेरे नगर में

बहुत बढ़िया आदरणीय शिज्जू जी 

Comment by ajay sharma on December 12, 2013 at 10:46pm

behatreen ashaaar hai .......

हर शै पे हर मुकाम पे तू थी

तन्हा हुआ न तेरे नगर में    bar bar padhne yogya 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 8:17pm

भाई बैद्यनाथ सारथी जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 8:15pm

आदरणीया मीना पाठक जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 8:15pm

आदरणीय निलेश जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2013 at 8:13pm

आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपका आभार

Comment by Saarthi Baidyanath on December 12, 2013 at 8:08pm

बेहतरीन शेर 

यूँ हैरतों से देखे मुझे लोग

है मेरा नाम आज खबर मे....वाह शिज्जू साहब ...वाह 

Comment by Meena Pathak on December 12, 2013 at 7:58pm

बहुत सुन्दर रचना बधाई आप को आदरणीय 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 12, 2013 at 5:19pm

कठिन बह्र रही होगी... आपने आसान कर दी ... बधाई  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 12, 2013 at 4:46pm

आदरणीय शिज्जू जी ..अब मैं आपके उस अशार के मतलब को बखूबी समझ पाया ..मैं पूर्णतया सहमत भी हूँ ..मेरी शंका के निवारण के लिए धन्यवाद ..सादर 

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